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________________ परिच्छेद एक नाट्य कला उद्द्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में नाटय कला की विविध सामग्री प्रस्तुत की है । उसे तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। (१) नाटयकला से सम्बन्धित विशिष्ट शब्द, (२) नृत्य के विभिन्न प्रकार तथा (३) लोकनाट्य की परम्परा । इनका विशेष विवरण इस प्रकार हैनाटय कला से सम्बन्धित विशिष्ट शब्द कुवलयमालाकहा की प्रथम पंक्ति ही नृत्य के वर्णन से प्रारम्भ होती है। मंगलाचरण करते हुए कवि कहता है कि उन प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव को नमस्कार है, जिनके जन्मोत्सव पर बाहुलताओं को ऊँचा कर बजते हुए मणिवलय के ताल से शब्द करती हुई देवियाँ नृत्य करती हैं। दूसरे प्रसंगों में कहा गया है कि अनेक प्रकार के नत्य करने के कारण कुवलयचन्द्र के चरण कोमल थे। तथा कुमार महेन्द्र कुवलयचन्द्र की कामातुर अवस्था को देख कर कहता है-'कुमार, तुम्हारे चेहरे पर यह शृंगार, वीर, वीभत्स, करुण आदि अनेक रसों से युक्त नाटक-सा आत्मगत भाव क्या नृत्य कर रहा है ? इस प्रकार के सन्दर्भो द्वारा उद्द्योतन ने नाटय कला से सम्बन्धित अनेक शब्द प्रयुक्त किये हैं, जो विचारणीय हैं । नत्त-ताल और लय के आधार पर किये जानेवाले नर्तन को नृत्त कहा गया है-नृत्तं ताललयाश्रयम् । नृत्त में अभिनय का सर्वथा अभाव होता है। १. पढम णमह जिणिदं जाए णच्चंति जम्मि देवीओ। उव्वेल्लिर-बाहु-लया-रणंत-मणि-वलय-तालेहिं॥-१.१ २. अणेय णट्ट-करणंगहार-चलण-कोमलई ।-२२.२२. ३. कुमार, किं पुण इमं सिंगार-वीर-बीभच्छ-करुणा-णाणा-रस-सणाहं णाडयं पिव अप्पगयं णच्चीयइ त्ति ।-१५९.७. ४. दशरूपक, १.९. १८
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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