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________________ राजनैतिक जीवन गया है । भावप्रकाश के अनुसार गुदा के पास पीडायुक्त पुंसिया होने पर भगन्दर होता है ।' पाश्चात्य वैद्यक में भगन्दर को 'फिस्चुला इन एनो' कहते हैं।' कुष्ठ-मथुरा के अनाथ-मण्डप में कुष्ट रोग से पीड़ित अनेक व्यक्ति रहते थे, उन्हें विश्वास था कि मूलस्थान भट्टारक के पास जाने से कुष्ट रोग दूर हो जाता है। सूर्य की पूजा के लिए मूलस्थान प्रसिद्ध रहा है। कुष्ट रोग के निवारण के लिए सूर्यपूजा प्राचीन समय से प्रचलित रही है। उद्द्योतनसूरि ने कहा है कि कुष्ठ रोग से शरीर के समस्त अंग सड़ जाते हैं। सम्भवतः उनका संकेत श्वेत कुष्ठ रोग की तरफ है। सन्निपात-उद्द्योतन ने सन्निपात के कारण, लक्षण एवं निदान की जानकारी दी है। कुमार कुवलयचन्द्र को दक्षिण-यात्रा में विन्ध्याटवी में अत्यन्त प्यास लगी। बहुत भटकने के बाद उसे एक सरोवर दिखायी दिया। कुमार पानी पीने जैसे ही उसके तट पर पहुँचा उसे आयु-शास्त्र में पढ़ी हुई बात याद आयीपायुसत्थेसु मए पढियं (११४.१३)-कि 'तीव्र भूख-प्यास लगने पर, परिश्रम से थके होने पर तुरन्त ही पानी अथवा भोजन नहीं करना चाहिये। क्योंकि वायू, पित्त, कफ आदि जो सात धातुएँ व दोष हैं उन्हें तष्णा से तप्त शरीर के जीवाण विभिन्न स्थानों में विचलित कर देते हैं। इस प्रकार विसम स्थानों में धातुएँ होने से यदि उसी समय पानी पी लिया जाय, भोजन कर लिया जाय अथवा स्नान किया काय तो वे धातुएँ वहीं दूसरे के स्थानों पर स्थिर हो जाती हैं, जिससे उसी समय सन्निपात नाम का महारोग हो जाता है-'तत्थ संणिवाओ णाम महादोसो तक्खणं जाय इति'-(११४.२७) । सन्निपात होने से सिर-वेदना जैसी महाव्याधि उत्पन्न होती है तथा उसी क्षण मृत्यु हो जाती है। अतः जानबूझ कर इस समय स्नान करना उपयुक्त नहीं है।' ऐसा सोच कर कुवलयचन्द्र कुछ समय के लिए एक तमाल वृक्ष की छाया में बैठ कर विश्राम करने लगा। शीतलवयार से जब उसका परिश्रम शान्त हो गया तब उसने पानी आदि पिया । सन्निपात रोग का यह कारण एवं लक्षण वैघकशास्त्र के अनुरूप है। सोमदेव ने धूप में से आकर तुरन्त पानी पी लेने से दृग्मान्द्य रोग उत्पन्न होने की बात की है। १. भावप्रकाश, भाग २ चि० भ० श्लोक १-२. २. वही, पृ० ५३९. ३. कुव० ५५,१०.१८. ४. कत्थइ कुटेण अहं सडिओ सव्वेसु चेय अंगेसु-वही० २७४.६. तेण य सीस-वेयणाइया महावाहि-संघाया उप्पज्जंयति । अण्णे तक्खणं चेय विवज्जति ।--वही, ११४.२७. ६. दृग्मान्द्यभागातपितोम्बुसेवी।-यश०, पृ० ५०९.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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