SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ण एवं जातियाँ ११७ होआ-तुन' और संस्कृत का 'हूण' शब्द एक ही जाति के द्योतक हैं ।' भारत में तोमर, गुर्जर और हूणों के सम्बन्ध चलते रहे हैं । कुव० के तोरमाण एवं उसके गुरु हरिगुप्त के उल्लेख से यह अनुमान किया जा सकता है कि कुछ हूणों ने धर्म को अपना धर्म स्वीकार कर लिया था । लड़ाकू जाति होने के कारण भारत में हूण क्षत्रिय जाति में घुल-मिल गये । ११वीं शताब्दी तक इन्हें क्षत्रिय माना जाने लगा था । पंजाब में ३६ राजपूत वंशों में एक वंश का नाम अब तक हू है | राजस्थान की रेभारी जाति की एक शाखा को हूण कहते हैं । हूण की 'जउल' और 'ख्योन' जातियाँ वर्तमान में पंजाव की 'चावला' और खन्ना' जातियों के रूप में प्रचलित हैं, जो यह प्रकट करती हैं कि हूण जातियाँ पंजाब की जनता में बहुत अधिक घुल-मिल गयी हैं । २ खस - राजतरंगिणी के अनुसार खस लोगों ने काश्मीर के दक्षिण-पश्चिम भाग पर अधिकार जमाया था । राजपुरी और लोहारा के पहाड़ी राज्यों में वे रहते थे । सर ओरेल स्टेइन ने खस की पहचान वर्तमान में वितस्ता घाटी में निवास करनेवाली खाका जाति से की है । जब कि नेपाल के गोरखा अभी भी (खस्सा) कहे जाते हैं तथा उनकी पर्वतीया भाषा को खस कहा जाता है । सिल्वालेवी के अनुसार खस शब्द हिमालय प्रदेश की निवासी जातियों का वाचक है, जबकि सेन्ट्रल एशिया में दरदिस्तान और चीन की सीमानों के बीच के प्रदेश को खस कहा जाता है । 3 तज्जिक - उद्योतनसूरि ने 'ताइए' का केवल एक बार व्यापारिक मण्डी के प्रसंग में उल्लेख किया है । डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने अपने कल्चरल नोट में 'ताइए' का अर्थ ताप्ति किया है । गुजराती अनुवादक ने तमिल की सम्भावना व्यक्त की है । किन्तु वर्णन के अनुसार अरब के व्यापारियों के लिए 'ताइए' ( तजिक ) शब्द प्रयुक्त प्रतीत होता है । ये व्यापारी कूर्पासक से अपने शरीर ढंके थे, मांस में इनकी रुचि थी तथा मदिरा और प्रेम-व्यापार में वे तल्लीन थे तथा 'इसि - किसी मिसि' शब्दों का उच्चारण कर रहे थे । उद्योतनसूरि के समय में तजिक लोग भारत में जमने लग गये थे । कोरिया के बौद्ध यात्री हू चिश्रो ( hui chao) ने, जो पश्चिमी भारत का लगभग ७२५ ई० सन् में भ्रमण कर रहा था, उल्लेख किया है कि इस समय तज्जिकों (अरबों) ने देश पर चढ़ाई कर दी है तथा आधा देश वे लूट चूके हैं ।" 'गउडवहो' में यशोवर्मन् १. डा० बुद्धप्रकाश, त्रिवेणिका - कालिदास और हूण, पृ० ४२. २. वही, पृ० ७०-७१. ३. बु०पो० सो० पं०, पृ० २०९. ४. बु,प्पास-पाउयंगे कास-रुई पाण-मयण - तल्लिच्छे । 'इसि - किसि - मिसि' भणमाणे अह पेच्छइ ताइए अवरे ॥ कुव० १५३.८ बु० - अ० हि० सि०, पृ० १०५... ५.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy