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________________ ११६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन (२.९,४०.२४), ताज्जिक (१५३.८), अरवाग (४०.२४), कोंचा (४०.२५), चंचुय (४०.२५)' एवं सिंघल (२.९)। उद्द्योतनसूरि ने इन जातियों को अनार्य मनुष्यों की श्रेणी में गिना है, इसके अतिरिक्त इनके परिचय आदि के सम्बन्ध में उन्होंने कुछ नहीं कहा । अन्य सामग्री के आधार पर इनका परिचय प्राप्त किया जा सकता है। प्राचीन भारतीय साहित्य में इन विदेशी जातियों के अनेक उल्लेख मिलते हैं। स्वयम्भू के 'पउमचरिउ एवं पुष्पदन्त के 'आदिपुराण' में इनकी विस्तृत सूची प्राप्त होती है । शक-भारतवर्ष में शकों ने अपने लम्बे राज्यकाल में भारतीय संस्कृति को काफी प्रभावित किया। लगभग ९वीं शताब्दी ई० पू० शकों का आक्रमण भारत में हुआ माना जाता है। किन्तु ईरान को तरह भारत से भी शक-आक्रमण के लगभग सभी चिह्न लुप्त हो गये। केवल कुछ विचित्र स्थान, नाम और कुछ धुंधले कथानक इन लोगों के प्रतीक रह गये। क्षत्रिय जाति पर शकों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा । पंजाब में ठाकुर एवं टोखी जाति के अतिरिक्त सोइ एवं सिक्ख जाति-समूहों को शकों का आधुनिक रूप स्वीकार किया जा सकता है ।। यवन-लगभग पाणिनि के समय उत्तरी पंजाब में यवनों का आक्रमण हुआ था। भारतीय साहित्य में यवन जाति के अनेक उल्लेख मिलते हैं । यवनों के एक बड़े समुदाय ने भारतीय संस्कृति के अनुरूप अपने को ढालने का प्रयत्न किया था और कुछ समय बाद वे भारतीय जनता में घुल-मिल गये। वर्तमान में पंजाब में प्राप्त जोनेजा की उप-जाति यवनों के अनुकूल आचरण करती है। जोनेजा शब्द 'यवनज' का अपभ्रंश प्रतीत होता है। हूण-भारतवर्ष में हूणों का आगमन लगभग ईसा की चौथी शताब्दी में हुा । हूण शब्द पर विचार करते हुए डा. बुद्धप्रकाश ने कहा है कि अवेस्ता का 'ह्यमोन', पल्हवी का 'रिवयोन', सिरियन का 'कियोनाये', चोनी का होगा, १. सक-जवण-सबर-बब्बर-काय-मुरूंडोंड्-गौंड्-कप्पडिया। ___अरवाग-हूण-रोमस-पारस-खस-खासिय चेय ॥-कुव० ४०.२४. २. खस-सब्बर-बब्बर-ढक्क कीर । कउबेर-कुरब-सोंडीरवीर ॥ तुंगंग-बंग-कन्होज्ज भोट्ट । जालंधर-जवणा-जाण-जट्ट ॥ कंभीरो सीणर कामरूव । ताइय-पारस-काहार-सूव ॥ पउमचरिउ, ८२.६. ३. पारस-बब्बर-गुज्जर-वराड, कण्णाउ-लाड । आहीर-कीर-गंधार-गउड णेवाल-चोड ॥ इत्यादि-आदिपुराण, पृ० २३०.३१. ४. द्रष्टव्य-म० भा०, शांतिपर्व, ३५.१७, १८, मनु०, १०.४३, ४५. ५. बुद्धप्रकाश, त्रिवेणिका-महाभारत : एक ऐतिहासिक अध्ययन, पृ० ६३. ६. बु० पो० सो० पं०, पृ० २४५. ७. द्रष्टव्य-डा. उपेन्द्र ठाकुर-द हूण इन इण्डिया, १९६७.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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