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________________ ९६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन कट पर्वत के सन्निकट स्थित होता था तथा सभी लोगों से परिपूर्ण भी । ' सम्भव है, आधुनिक तहसील जैसी स्थिति खर्वट की रही होगी । खेटक (२४०.२० ) ; खेट ( २५६ . १ ) - पाणिनि ने खेट को गहिंतनगर कहा है । मानसार एवं मयमतम् से भी ज्ञात होता है कि खेटक बहुत साधारण प्रकार का सन्निवेश था, जिसमें अधिकतर शूद्र रहते थे । यह दो या दो से अधिक ग्रामों के मध्य में स्थित छोटे लोगों की वस्ती थी । डा० अग्रवाल के अनुसार आधुनिक 'खेड़ा' शब्द इसी खेट से निकला है । उद्योतनसूरि ने खेट और खेटक शब्दों का प्रयोग किया है । सम्भव है, दोनों में थोड़ा अन्तर रहा हो । ग्राम ( ५५.७, २४०.२० ) - ग्राम के स्वरूप का वर्णन श्रादिपुराण में विस्तार से हुआ है । ४ कुव० के अनुसार ज्ञात होता है कि ग्राम की सीमाएँ नदी, वृक्ष, उपवन आदि से विभक्त होती थीं। एक-एक पद की दूरी पर धवलगृह बने होते थे तथा वाण फेंकने की दूरी पर महाग्रामों की स्थापना होती थी ( कुव० १४९.६ ) । गाँव में कम से कम सौ एवं महानाम में पाँच सौ घर होते थे । । गोट्टगण (२४०.२२) - कामगजेन्द्र अपरविदेह के तथा गोट्ठगणों को सीमान्त सदृश देखता है ( २४१.१ ) कि गोगण ग्रामों के बाहर होते थे, जहाँ गोधन एकत्र हुआ इसे मध्यप्रदेश में खिरा कहते हैं । उसके वाद गाँव को होगा और बाद में वन प्रारम्भ होता था ( २४१.१ ) । द्वीप ( २५९.१८ ) - ' द्वीप' का उल्लेख अन्य भौगोलिक शब्दों के साथ हुआ है । प्रसंग के अनुसार द्वीप का अर्थ स्थानीय नदी का किनारा प्रतीत होता है, जिसे पारकर स्वयम्भूदेव ब्राह्मण आजीविका खोजने निकला था । गोट्टगण को ग्रामसदृश इससे ज्ञात होता है करता था । आजकल सीमा का अन्त होता द्रोणमुख ( २५६.१८ ) - जो नगर किसी नदी के तट पर स्थित हो वह द्रोणमुख कहलाता है । यह एक प्रकार का व्यापारिक नगर होता था, जहाँ जलमार्ग एवं स्थलमार्ग दोनों से माल उतरता था । ' इसमें वणिक् एवं नाना जाति १. मानसार, अध्याय १०, मयमतम् अध्याय १०. २. अष्टाध्यायी, ६-२, १२६. ३. ग्रामयो: खेटकम् मध्ये - शिल्परत्न, अध्याय ५. ४. शा० आ० भा०, पृ० ७१ - ७२. ५. आदिपुराण, १६ – १६४, ६५. ६. णयरपुर-खेड - कब्बड गामागरदीव - तह - मंडबे दोहा-पट्टण-आराम- पवा - विहारेसु ७. आदिपुराण, १६-१६३. ८. मो० – सा०, पृ० १६३. । ।। - २५९-१८.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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