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________________ 76 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 से निकाल दिया, वह वहाँ से शौरीपुर आया और राजकुमार वसुराज का चाकर बनकर रहने लगा। यहाँ प्रश्न है कि मुनि तो नियम से स्वर्ग ही जाते हैं, फिर वसिष्ठ मुनि का जीव मनुष्य क्यों हुआ ? समाधान – निदानबंध के कारण। अररे ! देखो तो बैर कितना खतरनाक है, पुत्र बनकर पिता का अहित चाहा। वाह रे ! संसार (राग-द्वेष) तेरी भी क्या विचित्रता है। किन्हीं पिता-पुत्र को रागवश मिलाता है तो किन्हीं को द्वेषवश । इसीलिए ज्ञानियों ने राग-द्वेष दोनों को ही हेय कहा है, तात्पर्य एक भी रखने लायक नहीं, करने लायक नहीं, मात्र वीतरागता ही जीव को सुखदायी तथा उपादेय है। - ऐसा निर्णय कर सब जीवों को राग-द्वेष, बैरविरोध, निदान बंध आदि से बचना चाहिए और वीतराग स्वभाव की आराधना करना चाहिए। अपने उपयोग को तत्त्वाभ्यास व तत्त्वनिर्णय करने में लगाये रखना चाहिए। राजगृही नगरी में राजा जरासंध राज्य करता था। वह अर्धचक्रवर्ती प्रतिवासुदेव था, उसके शस्त्र भण्डार में सुदर्शन चक्र उत्पन्न हुआ। तीनों खण्डों के सभी राजाओं को जीत लिया, परन्तु अभी सिंहरथ राजा को जीतना शेष था। कुमार वसुराज ने युक्तिपूर्वक उस सिंहरथ राजा को जीत लिया और बंदी बनाकर अपने सेवक कंस द्वारा राजा जरासंध को सौंप दिया। इससे प्रसन्न होकर जरासंध ने अपनी पुत्री जीवद्यशा तथा आधा राज्य वसुराज को देना चाहा, परन्तु वसुराज ने राज्य स्वयं न लेकर कंस को दिलवाया और जीवद्यशा का विवाह भी कंस से ही करवा दिया। एक दिन कंस ने जाना कि वह स्वयं मथुरा का राजकुमार है और पिता उग्रसेन ने बचपन से ही उसका परित्याग कर दिया था तब उसके पूर्वभव के संस्कार जाग उठे और उसने क्रोधपूर्वक पिता
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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