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साहित्य प्रकाशन के अन्तर्गत् जैनधर्म की कहानियाँ भाग १ से २३ तक एवं लघु जिनवाणी संग्रह : अनुपम संग्रह, चौबीस तीर्थंकर महापुराण (हिन्दीगुजराती), पाहुड़ दोहा-भव्यामृत शतक-आत्मसाधना सूत्र, विराग सरिता तथा लघुतत्त्वस्फोट, अपराध क्षणभर का (कॉमिक्स) – इसप्रकार ३१ पुष्पों में लगभग ७ लाख १० हजार से अधिक प्रतियाँ प्रकाशित होकर पूरे विश्व में धार्मिक संस्कार सिंचन का कार्य कर रही हैं।
प्रस्तुत संस्करण में पुराण-पुरुषों के भव-भवान्तरों के साथ-साथ आहारदान के ऊपर विशेष प्रकाश डालने के अर्थ राजा वज्रजंघ, राजा श्रेयांस, सती चंदनबाला के प्रसंग विशेष रूप से दिए गये हैं। जो सभी पं. प्रेमचंदजी ने ब्र. हरिलालजी द्वारा लिखित साहित्य में से संकलित किये हैं। इसका सम्पादन पं. रमेशचंद जैन शास्त्री, जयपुर ने किया है। अत: हम सभी आपके आभारी हैं।
इन कथा-कहानियों का लाभ बाल युवा वृद्ध सभी वर्ग के लोग ले रहे हैं, यही इनकी उपयोगिता तथा आवश्यकता सिद्ध करती है। इसी कारण पिछले २८ वर्षों से निरन्तर इनकी मांग बनी हुई है। आशा है इसका स्वाध्याय कर सभी पाठक गण अवश्य ही बोध प्राप्त कर सन्मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल करेंगे। साहित्य प्रकाशन फण्ड, आजीवन ग्रन्थमाला परमशिरोमणि संरक्षक, शिरोमणि संरक्षक, परमसंरक्षक एवं संरक्षक सदस्यों के रूप में जिन महानुभावों का सहयोग मिला है, हम उन सबका भी हार्दिक आभार प्रकट करते हैं, आशा करते हैं कि भविष्य में भी सभी इसी प्रकार सहयोग प्रदान करते रहेंगे।
विनीतः मोतीलाल जैन
पं. अभय जैन शास्त्री अध्यक्ष
साहित्य प्रकाशन प्रमुख
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