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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23
तब जम्बूकुमार अत्यन्त मृदु शब्दों में बोले- “हे मातुल ! आप बहुत दिनों बाद मुझसे मिले हो और वह भी ऐसे प्रसंग में, इसलिये मेरे ऊपर अत्यन्त स्नेह होना स्वाभाविक है; परन्तु हे मातुल ! आप तत्त्वानुरागी हैं, अध्ययनशील हैं, जिनदेशना एवं उसके मर्म के जानकार हैं कि मार्ग तो एक ही प्रकार का है, परन्तु संसारी जीवों की दशा को देखकर उसका निरूपण दो प्रकार से किया गया है। परन्तु आत्महित का तो एकमात्र उपाय दिगम्बरी दीक्षा धारण कर शुद्धोपयोग रूप आत्मस्वरूप में स्थिर होना ही है।
इसप्रकार सभी को संतुष्ट करते हुए कुमार ने मौन का आवलंबन ले लिया, इतने में ही प्रातःकाल की सूर्यकिरण फूट पड़ी और जम्बूकुमार के साथ विद्युच्चर चोर ने अपने 500 साथियों सहित मिथ्यात्व एवं पंच-पापों को त्यागकर जिनेश्वरी दीक्षा धारण की। जिनशासन की शरण अंगीकार की। जम्बूस्वामी तो अपनी साधना पूरी कर मोक्ष पधारे, पर विद्युच्चर आदि 500 मुनिराज अपनी साधना पूरी कर पाये या नहीं - यह जानने के लिए आगामी कथा का रसास्वादन लीजिए।
- जम्बूस्वामी का विवाह एवं वैराश्य