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________________ 32 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 मुनिराज महावीर प्रतिदिन नगरी में पधारते और बिना आहार किये लौट जाते....उन प्रभुने आज आहार ग्रहण किया....नगरी में यह समाचार फैलते ही लोग हर्ष से दौड़ते हुए उधर आने लगे कि चलो, उस भाग्यशाली आत्मा के दर्शन करें और अभिनन्दन करें....जिसके हाथ से यह महान कार्य हुआ है। लोगों ने जब देखा कि वृषभदत्त सेठ की एक दासी के हाथ से प्रभु ने आहार लिया है, तब वे आश्चर्यचकित हो गये....अरे, लोगों को क्या खबर थी कि वह दासी नहीं किन्तु प्रभु महावीर की मौसी है....उनकी श्रेष्ठ उपासिका है....प्रभु को पारणा कराके चन्दना धन्य हो गई। ....आहार ग्रहण करके वे वीर योगिराज तो मानों कुछ भी नहीं हुआ हो-ऐसे सहजभाव से वन की ओर गमन कर गये और वहाँ जाकर आत्मध्यान में लीन हो गये। जबतक प्रभु जाते हुए दिखाई दिये, तबतक चन्दना उन्हें टकटकी बाँधे देखती रही....आकाश में देव और पृथ्वी पर जनसमूह उसे धन्यवाद देकर उसकी प्रशंसा कर रहे थे....किन्तु चन्दना तोसारे जगत को भूलकर, समस्त परभावों से परे, चैतन्यतत्त्व के निर्विकल्प ध्यान में शान्तिपूर्वक बैठी थी....उसकी गम्भीरता अद्भुत थी। __इधर वृषभदत्त सेठ के घर में मुनिराज के आहारदान का प्रसंग बनने से आनन्द-मंगल छाया हुआ है.... उधर सेठ स्वयं तो बेड़ी कटवाने हेतु लुहार को बुलाने गये थे सो वापिस लौट रहे हैं....मार्ग में आनन्दमय कोलाहल देखकर लोगों से पूछा – यह क्या हो रहा है ? किस बात का है इतना हर्षमय कोलाहल ? तब प्रजाजन कहने लगे- अरे सेठ ! आपके तो भाग्य ही खुल गये ....आपके आँगन में तो महावीर मुनिराज का पारणा हुआ है ! पाँच माह और पच्चीस दिन के उपवास पश्चात् पारणे का धन्य अवसर आपको प्राप्त हुआ है। आपके गृह-आँगन में चन्दना ने भगवान को आहारदान दिया है....उसी का यह उत्सव हो रहा है....देव भी आपके आँगन में रत्नवृष्टि एवं जय-जयकार कर रहे हैं।
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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