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जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23
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कर्मोदय की बिडम्बना में भी ज्ञान-वैराग्यशक्ति
एकबार चन्दना कुमारी अपनी सहेलियों के साथ नगर के बाहर उद्यान में क्रीड़ा कर रही थी कि उसके लावण्यमय यौवन से आकर्षित होकर एक विद्याधर ने उसका अपहरण कर लिया; परन्तु बाद में अपनी पत्नी के भय से उसने चन्दना को कौशाम्बी के वन में छोड़ दिया । कहाँ वैशाली और कहाँ कौशाम्बी का जंगल ! वन के भील सरदार ने उसे पकड़ लिया और एक वेश्या को सौंप दिया। एक के बाद एक होनेवाली इन घटनाओं से चन्दना व्याकुल हो गई कि अरे, यह क्या हो रहा है ?
.... ऐसी अद्भुत सुन्दरी को देखकर वेश्या विचारने लगी कि कौशाम्बी के नागरिकों ने ऐसी रूपवती स्त्री कभी देखी नहीं है । इसे रूप के बाजार में बेचकर मैं अच्छा धन कमाऊँगी । - ऐसा सोचकर वह सती चन्दनबाला को वेश्याओं के बाजार में बेचने ले गई। अरे रे ! इस संसार में पुण्य-पाप की कैसी विचित्रता है कि एक सती नारी वेश्या के हाथों बिक रही है !
अहो ! देखो तो पुण्य-पाप के उदय की विचित्रता ! जहाँ की महारानी मृगावती स्वयं चन्दनबाला की बहिन है, उस कौशाम्बी के वेश्या बाजार में महावीर की मौसी चंदनबाला आज एक दासी के रूप में बिक रही है ! पर ज्ञानी तो ऐसे पुण्य-पाप के उदय में भी अपनी आत्मा को उनसे भिन्न रखकर सदा ज्ञानचेतना का ही अनुभव किया करते हैं ।
प्रभु वीरकुमार के सानिध्य में चंदनबाला ने अपने ज्ञानस्वभाव का अनुभव किया था, उसके प्रताप से वे इस विपरीतता के समय में भी अपने को आत्मा / ज्ञाता अनुभव करते हुए एवं पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करते