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________________ 76 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ भेज दी; परन्तु अनन्तमती (विलासिनी) रूपवान उपेन्द्र पर मोहित होकर उसके साथ कामभोग आदि करके भ्रष्टा हो गई। इधर उपेन्द्र का भाई तथा श्रीकान्ता का पति भी उस विलासनी के रूप पर मोहित होकर उसे चाहने लगा। इसप्रकार वे दोनों भाई इन्द्र और उपेन्द्र उसके लिए युद्ध करने लगे। ____ आचार्य कहते हैं कि देखो, मनुष्यों के ऐसे भोगादि सुखों को धिक्कार है कि जिनके लिये भाई-भाई में युद्ध हो। यह बातें सुनकर राजा श्रीषेण को अपनी आज्ञा भंग होने का बहुत ही दुःख हुआ। इस कारण वह विषफल सूंघकर मर गया। तत्पश्चात् धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व मेरू की उत्तर दिशा में उत्तरकुरू नाम की सुख देने वाली भोगभूमि में लावण्य आदि से सुशोभित आर्य हुआ। उनकी रानी सिंहनिन्दिता भी उसी विषफल को सूंघकर मर गई तथा प्रदत्त दान से पैदा हुए पुण्य के प्रभाव से उसी भोगभूमि में उसी आर्य की आर्या हुई। दूसरी रानी अनिन्दिता भी ऐसे ही मरकर स्त्रीलिंग छेदकर महापुण्योदय से उसी भोगभूमि में आर्य हुई और राजा के रह रही सत्यभामा ब्राह्मणी भी उसी प्रकार से प्राणों का त्याग करके धर्म के प्रभाव से उस अनिन्दिता आर्य की आर्या हुई। आचार्य कहते हैं कि देखो ! अपमृत्यु तथा अपघात से मरकर भी केवल उस महादान के फलस्वरूप वे सब शुभगति को प्राप्त हुए थे, इसलिये कहते हैं कि दान देना उत्तम है। दोनों भाई जब उस विलासिनी के लिए युद्ध कर रहे थे, तभी पूर्वभव के स्नेहवश वहाँ एक मणिकुण्डल नामक विद्याधर आया और उन्हें युद्ध करने से रोककर उनसे करने लगा कि हे राजकुमारो! मैं तुम्हारा पूर्वभव का सम्बंधी हूँ, मैं तुम्हें एक कथा कहता हूँ उसे तुम ईर्ष्याभाव छोड़कर तथा शान्तचित्त होकर सुनो ! क्योंकि यह कथा तुम्हारा ही हित करने वाली है। वे भी अपने लिए हितकारी जानकर आपस में लड़ना बंद करके ध्यानपूर्वक वह कथा सुनने लगे।
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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