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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १४ / २८ सेनापति : हम जहाँ रहते हैं, उस द्वीप का क्या नाम है ? राजा श्रीकंठ : इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है। इस जम्बूद्वीप में अपने देश का नाम भरतक्षेत्र है । जहाँ सीमंधर भगवान विराजमान हैं, उसका नाम विदेहक्षेत्र है। भरतक्षेत्र और विदेहक्षेत्र दोनों ही जम्बूद्वीप में आते हैं। सेनापति : वाह ! सीमंधर भगवान और हम एक ही द्वीप में रहते हैं। राजा श्रीकंठ : हाँ, भगवान और हम एक ही द्वीप में रहते हैं। इतना ही नहीं, सीमंधरस्वामी, युगमंधरस्वामी, बाहुस्वामी, सुबाहुस्वामी आदि सभी बीस तीर्थंकर भी इस जम्बूद्वीप में ही विराजमान हैं। सेनापति : अहो ! धन्य हैं महाराज! अभी भी हम सीमंधर भगवान के पास जा सकते हैं - यह जानकर हम भी धन्य हुए। ( अचानक विद्याधर आते हैं ।) अरे ! राजा श्रीकंठ : अहो ! यह हमारे मित्र विद्याधर आये हैं, तुम तो बहुत दिनों में दिख रहे हो। कहाँ गये थे? विद्याधर : मैं सारे जम्बूद्वीप के तीर्थों की यात्रा करने गया था । विदेहक्षेत्र में भगवान के साक्षात् दर्शन किये, भरत क्षेत्र में शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखरजी की यात्रा की और वासुपूज्य भगवान की दिव्य - ध्वनि भी सुनी। राजा श्रीकंठ : हे मित्र ! भगवान की दिव्य ध्वनि में आये संसार से छूटने का उपाय संक्षेप में हमें भी तो बताओ ? 5 विद्याधर : दिव्य-ध्वनि में ऐसा आया कि निश्चय सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्र ही संसार से छूटने का उपाय है। यह सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र आत्मा के आश्रय से होते हैं। पर के आश्रय से या व्यवहार के आश्रय से मोक्षमार्ग नहीं मिलता, इसलिए हे जीवो! तुम पराश्रयबुद्धि को छोड़कर स्वभाव का आश्रय करो। दीवानजी : आपने और क्या सुना?
SR No.032263
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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