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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग- १४/२७ हैं, यही तो मध्यलोक है। यह मध्यलोक अनेक विचित्रताओं से ओतप्रोत और महान वैभवशाली है। दीवानजी : मध्यलोक की क्या विशेषता है? राजा श्रीकंठ : मध्यलोक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मुक्तदशा की प्राप्ति मध्यलोक से ही हो सकती है। जम्बद्वीप से रा व त शबिजया पर्वत हतोटा पर्वत / शिरवरी पुण्डरीका हरण्यवत रूप्यकुला: .. समणकला सम्मि मेहामुण्डरीका . पवेत. रम्यक जारी क्षेत्र केशी पर्वत - विदेह समेरु सीतोदा-:: 'AL :- -:-:-::- सीता क्षेत्र -- निषधं. तिगि ::: : - हकि हरिजान्ता---- : पर्व :::.::हरित पर्वत - भत्र महा हिमवन महा पयः -F मनत हिताश्या:-- क्षेत्र हिमवन .पा सरोवरपंद पर्वत मियाद पर्वत त्र - क्षेत्रजल-E पर्वत भंडारीजी : क्या पूरे मध्यलोक से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं? राजा श्रीकंठ : मध्यलोक में भी असंख्य द्वीप-समुद्र हैं, उनमें से मात्र ढाई द्वीप से ही मुक्ति को प्राप्त हो सकते हैं।
SR No.032263
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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