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________________ श्रीकंठ राजा का वैराग्य 'प्रस्तावना :- बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य भगवान के समय का यह प्रसंग है। श्रीकंठ राजा वंदना करने के लिए श्री नंदीश्वर द्वीप की ओर जा रहे थे, तब रास्ते में मानुषोत्तर पर्वत के पास अचानक उनका विमान रूक गया, जिससे उन्हें वैराग्य हो गया था। उन्हीं श्रीकंठ राजा के पूर्वभव आदि का यह संवाद है। प्रथम अंक (इस प्रथम अंक में श्रीकंठ राजा के पूर्वभव का दृश्य है। पूर्वभव में वे एक व्यापारी के पुत्र थे, तब उन्होंने अपने भाई के निमित्त से किसप्रकार धर्म अंगीकार किया था, यही इस दृश्य में बताया जा रहा है।) छोटा भाई : नमस्ते भाईसाहब! आप कहाँ से आ रहे हैं? बड़ा भाई : भाई! जिनमंदिर से आ रहा हूँ। छोटा भाई : भाईसाहब! क्या आप प्रतिदिन मंदिर जाते हैं? बड़ा भाई : हाँ भाई! मेरी प्रतिज्ञा है कि जिस नगर में जिनमंदिर विद्यमान हो, उस नगर में मैं प्रतिदिन जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने के बाद ही आहार-पानी ग्रहण करूँगा; क्योंकि प्रथम कर्तव्य जिनेन्द्र भगवान के दर्शन का है। - छोटा भाई : भाईसाहब! जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने से हमें क्या लाभ है? बड़ा भाई : सुनो भाई, आज मैं जब जिनमंदिर जा रहा था, तब रास्ते में मुझे एक मुनिराज के दर्शन हुए। मुनिराज ने मुझे आत्मकल्याण करने का अद्भुत उपदेश दिया। उसके बाद मैं जिनमंदिर गया। वहाँ मुनिराज द्वारा दिये गये उपदेश का गहराई से विचार करने
SR No.032263
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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