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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ के लिए हमने बहुत कुछ कहा और धमकियाँ भी दीं, परन्तु वह जैन धर्म की हठ जरा भी नहीं छोड़ती। वहाँ तो उलटा हमारा ही अपमान हुआ। श्रेणिक - क्या ? अपमान हुआ, महाराज ? एकान्ती - राजन् ! हमारी ही मोचड़ी छुपाकर हमें ही अज्ञानी ठहरा दिया। श्रेणिक - आपको आपकी मोचड़ी का ध्यान क्यों नहीं आया? एकान्ती - भोजन के स्वाद में इसका ख्याल ही नहीं रहा, रानी ने हमारी सर्वज्ञता की परीक्षा में हमको झूठा सिद्ध किया और फिर भंयकर अपमानित करके हमें वहाँ निकाल दिया। श्रेणिक - महाराज ! समय आने पर मैं भी चेलना के गुरु का अपमान करके इसका अपमान का बदला अवश्य लूँगा। एकान्ती - हाँ राजन् ! यदि तुम एकान्त धर्म के सच्चे भक्त हो तो जरूर ऐसा करना। श्रेणिक - (दृढ़ता से) जरूर करूँगा। (एकान्ती गुरु-शिष्य झुंझलाते हुए अपने मठ में चले जाते हैं।) - चतुर्थ दृश्य श्रेणिक द्वारा मुनिराज पर उपसर्ग एवं सातवें नरक का आयुबंध (राजा श्रेणिक राज भवन में अपने सामन्तों के साथ बैठे हैं। वहाँ दो सैनिक प्रवेश करते हैं। दोनों की वेशभूषा अलग-अलग हैं।) श्रेणिक - चलो सामन्तो ! आज तो शिकार करने चलें। (तीनों जाते हैं। श्रेणिक एकटक दूर से परदे की ओर देख रहे हैं। तभी परदे के अन्दर हल्की लाइट जलती है, मुनिराज का चित्र दिखाई देते हैं।) श्रेणिक- अरे, वहाँ दूर-दूर क्या दिख रहा है ? क्या कोई शिकार हाथ में आया ?
SR No.032261
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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