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________________ 46 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ एकान्ती गुरु - आपके आमंत्रण से आज बहुत प्रसन्नता हुई है। (बालिका की ओर संकेत करते हुए) यह बालिका कौन है ? . एकान्ती गुरु का शिष्य - अच्छा, बहन ! इन गुरुजी को वंदन करो। बालिका- नहीं महाराज ! मैं जैनगुरुओं के अतिरिक्त किसी भी अन्य गुरु को वंदन नहीं करती हूँ। एकान्ती गुरु - क्यों नहीं करती हो ? . बालिका- क्योंकि, मैं, जो वीतरागी सर्वज्ञ हैं उन्हें तथा उनकी वाणी को और जो उनके मार्ग पर चलने वाले नग्न दिगम्बर मुनि हैं, उनको ही नमस्कार करती हूँ। __ एकान्ती गुरु का शिष्य - यह भी तो सर्वज्ञ हैं, फिर इन्हें नमस्कार क्यों नहीं करती। बालिका - ऐसा ! आप सर्वज्ञ हो ? एकान्ती गुरु - (विचार पूर्वक) बहन ! तेरे हाथ में सोने की मुहर है। सत्य है न ? बालिका - असत्य ! बिलकुल असत्य। देखो महाराज ! मेरे हाथ में तो कुछ भी नहीं है, क्यों ? ऐसी ही है क्या आपकी सर्वज्ञता? (एकान्ती गुरु के चेहरे पर कुछ विचित्र-सा भाव आकर चला जाता है।) चेलना - अरे बेटी ! अब यह चर्चा छोड़ो, उनको भोजन करने बैठाओ। अभय - महाराज ! भोजन करने पधारो। (एकान्ती गुरु अन्दर जाते हैं। थोड़ी देर बाद भोजन करके वापस आ जाते हैं।)
SR No.032261
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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