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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग -१२ नहीं। मुझे विश्वास है कि आपके प्रताप से अब महाराज थोड़े ही समय में एकान्तमत को छोड़कर जैनधर्म के परम भक्त बन जाएँगे और सम्पूर्ण नगर में जैनधर्म का जयकार गुंजायमान हो उठेगा। चेलना - वाह, पुत्र वाह ! धन्य होगी वह घड़ी, जब हमारे दिगम्बर जैनधर्म का यहाँ मन्दिर होगा। मुझे तो मन्दिर दिखाई भी देने लगा । 42 अभय - मुझे भी ... । माता ! अवश्य होगा। हम मन्दिर बनायेंगे और सबसे पहले बनायेंगे। अरे हाँ.... अभी हम भक्ति करते हैं । 60.c छोटा-सा मन्दिर बनायेंगे, वीर गुण गायेंगे, वीर गुण गायेंगे, महावीर गुण गायेंगे, छोटा-सा मन्दिर बनायेंगे, वीर गुण गायेंगे ॥ टेक ॥ हाथों में लेके सोने के कलशे, सोने के कलशे, चांदी के कलशे । प्रभुजी का न्न करायेंगे, वीर गुण गायेंगे । छोटा-सा मन्दिर ॥ १ ॥ हाथों में लेके पूजा की थाली,
SR No.032261
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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