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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ चेलना- पुत्र! वैशाली के कोई समाचार नहीं आए हैं। त्रिशलामाता के नन्दन वर्द्धमान कुमार क्या करते होंगे ? मेरी छोटी बहन चंदना क्या करती होगी ? अहो ! वह देश धन्य है, जहाँ तीर्थंकर भगवान स्वयं ही विराज रहे हों। अरे, वहाँ के कुशलक्षेम के समाचार सुनने मिलते तो कितना अच्छा रहता ? अभय- देखो माता ! दूर से कोई दूतो आ रही है। (दूती का प्रवेश) चेलना - आओ बहन, आओ ! क्या हैं मेरे देश के समाचार ? वहाँ चतुर्विध संघ तो कुशल है? वर्द्धमान कुमार अभी दीक्षित तो नहीं हो गये? मेरी छोटी बहन चंदना तो आनंद में है न ? दूती- माता ! जैनधर्म के प्रताप से चतुर्विध संघ तो कुशल है? वर्द्धमान कुमार तो वैराग्य प्राप्त कर दीक्षित हो गये। चेलना- हैं ! वर्द्धमान कुमार दीक्षित हो गये ? धन्य है उनका वैराग्य ! मेरी त्रिशला बहन महाभाग्यशाली है। अरेरे! भगवान के वैराग्य का प्रसंग हमें देखने को नहीं मिला। अभय- आप चंदनबाला के समाचार तो भूल ही गईं। दूती- (खेद से) माता ! मैं क्या कहूँ ? कुछ दिन पहले चंदना बहन और हम सब साथ में जंगल में खेलने गए थे, वहाँ चंदनबाला हमारे से अलग होकर अकेली ही मुनिराज की भक्ति करने लगी थी.....वहाँ कोई दुष्ट विद्याधर आकर चंदना को उठा ले गया। चेलना- (आश्चर्य से) हैं, क्या मेरी बहन का अपहरण हो गया? दूती- (द्रवित होकर) हाँ माता, बहुत दिनों से चारों तरफ सेनिक खोज में लगे हुए हैं, पर अभी तक कहीं पता नहीं लगा है। चेलना- हा.....हो प्यारी बहन चंदना ! तुम कहाँ हो ?
SR No.032261
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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