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________________ 36 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ । तुम्हारे दर्श बिन स्वामी ! मुझे नहिं चैन पड़ती है। छवि वैराग्य तेरी सामने आँखों के फिरती है। (सखी का प्रवेश) चेलना- सखी ! अभयकुमार को बुलाओ। सखी- जी माता ! (सखी जाती है और अभयकुमार सहित लौट आती है।) अभय- माता प्रणाम ! (आश्चर्य से) आप बेचैन क्यों हो? चेलना- (व्यथा से) पुत्र अभय ! कहाँ जैनधर्म की प्रभावना से भरपूर वैशाली नगरी और कहाँ यह राजगृही नगर ! यहाँ तो जहाँ देखो वहाँ एकान्त, एकान्त और एकान्त। जैनधर्म के अभाव में मुझे यहाँ कहीं भी चैन नहीं है। __ अभय-सत्य बात है, माता! अहो, वह देश धन्य है, जहाँ तीर्थंकर भगवान स्वयं विराज रहे हों। अरे रे ! यहाँ तो जिनेन्द्र भगवान के दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं। चेलना- तुम सत्य कहते हो, पुत्र ! ना ही यहाँ कोई जिनमंदिर दिखते हैं और ना ही दिखते हैं कोई वीतरागी मुनिराज। हाय ! मैं ऐसे धर्महीन स्थान में कैसे आ गई ? . अभय-माता! अभी सारे भारत में बिहार, बंगाल, उज्जैन, गुजरात, मारवाड़, सौराष्ट्र आदि अनेक राज्यों में जैनधर्म की प्रभावना हो रही है, परन्तु अपने इस राज्य में जगह-जगह एकान्त धर्म का ही प्रचार एवं प्रभाव है। नोट- अभयकुमार चेलना का पुत्र नहीं है, दूसरी रानी का पुत्र है, परन्तु धार्मिक स्नेह होने से दोनों में सगे माता-पुत्र जैसा ही प्रेम है। इस नाटक में भगवान महावीर की दीक्षा के समाचार का प्रंसग भी संवाद की अनुकूलता को लक्ष्य में रखकर आगे-पीछे रखा गया है। अतः इतिहासिज्ञ पुरुषों से हमारा निवेदन है कि वे इस बात को लक्ष्य में रखें।
SR No.032261
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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