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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १२ 22 श्री गुरु द्वारा मुनिदीक्षा जिस तरह फूल की खुशबू, चन्द्रमा की शीतलता, वसंत ऋतु की छटा, सज्जनों की सज्जनता, शूरवीरों का पराक्रम छिपा नहीं रहता । JOYTTVA उसी प्रकार भव्यों की भव्यता, वैरागी की उदासीनता छिपी नहीं रहती । पूज्य गुरुवर ने अपनी कुशल प्रज्ञा से शीघ्र मुक्ति सम्पदा के अधिकारी महाराजा बालि की पात्रता को परख लिया । जाति, कुल, देश आदि की अपेक्षा भी जनदीक्षा के योग्य हैं। इस प्रकार पात्र जानकर श्रीगुरु ने जिनागमानुसार प्रथम क्षेत्र, वास्तु आदि १० प्रकार के बहिरंग परिग्रह का त्याग कराया । पश्चात् बालि केशों का लोंच कर, देह के प्रति पूर्ण निर्मोही हो गये। मिथ्यात्व एवं अनन्तानुबंधी चार कषायों का त्याग तो पहले ही कर चुके थे; इसके उपरान्त वे अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान कषाय चौकड़ी एवं नव नोकषाय आदि शेष अन्तरंग परिग्रहों को त्याग कर स्वरूपमग्न हो गये। इस तरह श्रीगुरु ने विधिपूर्वक जिनेश्वरी दिगम्बरी दीक्षा प्रदान कर अनुगृहीत किया और श्री किष्कंधापुरी नरेश बालि राजा दीक्षा अंगीकार कर बालि मुनिराज बनकर परमेश्वर बनने के लिये शीघ्रातिशीघ्र प्रयाण करने लगे। क्षण-क्षण में अन्तर्मुख हो अतीन्द्रिय आनन्द की गटागट
SR No.032261
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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