________________
कभी सोचा! तुम्हारा परभव में क्या होगा?
इस संसार में परिभ्रमण करते हुए मैंने पूर्वकाल में चाँदी-सोना, रत्न, औषधि, सिंह-बाघ-हाथी-घोड़ा-मगरमच्छ, आदि की पहचान की; किन्तु इस देह में विद्यमान चैतन्यरत्न की परख नहीं की, जगत में सर्व श्रेष्ठ ऐसे अपने चैतन्यरत्न को कभी नहीं पहिचाना।
मेरे लिये इस जगत में हीरा-जवाहरात आदि कोई भी पदार्थ . अपूर्व नहीं है, किन्तु मेरा आत्मा ही मेरे लिए अपूर्व पदार्थ है। - ऐसा विचार करके जिज्ञासु आत्मा शीघ्र अपने शुद्ध चैतन्यरल की प्राप्ति का उपाय करता है।
देखो, एक दृष्टान्त आता है कि किसी नगर में एक वृद्ध जौहरी था, वह जवाहरात की परीक्षा में बहुत होशियार था। एक बार एक परदेशी जौहरी एक मूल्यवान रत्न लेकर आया और वहाँ के राजा से कहा किआप अपने यहाँ के जौहरियों से इस रत्न का मूल्यांकन कराइये। राजा ने जौहरियों को बुला कर आदेश दिया, किन्तु कोई उस रत्न का मूल्यांकन न कर सका। अन्त में जब राजा ने उस वृद्ध जौहरी को बुलवाया. तब उस जौहरी ने