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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/३९ की आज्ञा का ज्ञान नहीं था, मन्त्रियों को वाद-विवाद में चुप कर दिया, जिससे वे ईर्षावान मन्त्री रात्रि को मुनियों पर प्रहार करने के लिये ज्यों ही तैयार होते हैं, त्यों ही जैनधर्म का भक्त यक्षदेव उनकी रक्षा करके भक्ति द्वारा वात्सल्य प्रगट करता है। मंत्रियों द्वारा इस घोर अपराध की खबर जब राजा के पास पहुँची, तो राजा ने उन्हें अपने राज्य से निकाल दिया। इधर विहार करता हुआ इन ७०० मुनियों का संघ हस्तिनापुर में आता है और वे अपमानित हुए मन्त्री (बलि राजा वगैरह) भी हस्तिनापुर पहुँच कर राज्य कर्मचारी बन जाते हैं, तथा राजा को प्रसन्न करके राजा से ७ दिन को राज्य लेकर पूरे मुनिसंघ पर घोर उपद्रव/घोर उपसर्ग करने लगे, जबतक यह उपसर्ग दूर न हो, तबतक अन्न जल का त्याग कर हस्तिनापुर के श्रावकजन धर्मात्माओं के प्रति महान वत्सलता और परमभक्ति व्यक्त करते हैं। दूसरी ओर मिथिलापुरी में आचार्य श्रुतसागर भी मुनिवरों के ऊपर होते हुए उपसर्ग को देखकर नहीं रह पाते और तीव्रवत्सलता के कारण उनका मौन टूट कर 'हा'....ऐसा उद्गार उनके मुंह से निकल जाता है। - महान ऋद्धिधारक मुनिराज विष्णुकुमार सब बातें जानकर वात्सल्यभाव से प्रेरित होते हैं और युक्ति पूर्वक ७०० मुनिवरों का रक्षा करते हैं........हस्तिनापुर में जय-जयकार की मंगल ध्वनि होती है.......बलिराजा भी माफी मांगकर जैनधर्म का श्रद्धालु बनता है। विष्णुकुमार पुनः मुनि होकर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। यह वात्सल्य का पावन दिवस श्रावण सुदी पूनम का था। देव-शास्त्र-गुरु को नमूं, नमूं दिगम्बर धर्म। वीतरागता हो प्रगट, सहज मिले शिवशर्म।। पंच परम पद विश्व में, आगम के अनुसार। उनकी श्रद्धा-भक्ति से, करूं भवोदधि पार॥
SR No.032259
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2007
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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