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________________ ४ मथुरा में चातुर्मास और अयोध्या में आहार एक समय की बात है कि श्री सुरमन्यु आदि सप्त ऋद्धि धारी महा मुनिराज मथुरा नगरी के वन में चातुर्मास हेतु ठहरे हुए थे। चारणऋद्धि के प्रभाव से उन महा मुनिराजों को चातुर्मास में भी गमन सम्बन्धी दोष नहीं लगता था; अतः वे कभी किसी नगर में, वे कभी किसी नगर में जाते, वहाँ के मन्दिरों की वन्दना करते, योग मिलने पर वहीं आहार करते। आकाश मार्ग से क्षणमात्र में कभी पोदनपुर पहुँचकर आहार लेते, तो कभी विजयपुर जाते, कभी उज्जैन तो कभी सौराष्ट्र में पधारते । ( चारण ऋद्धिधारी मुनिवर आकाश में विचरते हैं और चातुर्मास में भी विहार करते हैं ।) इस प्रकार किसी भी नगरी में जाकर उत्तम श्रावक के यहाँ आहार लेते हैं और फिर मथुरा नगरी में आ जाते हैं। वे धीर-वीर महाशांत मुनिवर एकबार आहार के समय अयोध्या नगरी में पधारे और अर्हदत्त सेठ के भवन के निकट पहुँचे। अचानक उन मुनिवरों को देखकर अर्हदत्त सेठ ने विचार किया कि - "अरे! मुनि तो चातुर्मास में विहार करते नहीं हैं और यह मुनि यहाँ कैसे आ पहुँचे ? चातुर्मास के पूर्व तो यह मुनि यहाँ आये नहीं थे। अयोध्या के आस-पास वन में, गुफ़ाओं में, नदी किनारे, वृक्षों के नीचे या वन के चैत्यालयों में जहाँ-जहाँ मुनि चातुर्मास कर रहे हैं, उन सबकी वन्दना मैं कर चुका हूँ, किन्तु इन साधुओं को मैंने कभी नहीं देखा, यह मुनि आचारांग सूत्र की आज्ञा से परांगमुख स्वेच्छाचारी मालूम होते हैं, इसीलिये तो वर्षा काल में जहाँ-तहाँ घूम रहे हैं। यदि जिनाज्ञा के पालक होते तो वर्षा काल में विहार कैसे करते ? इसलिये यह मुनि जिनाज्ञा से
SR No.032259
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2007
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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