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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/२४ हो गई। जब अलचकुमार ने अनेक देशों सहित मथुरा का राज्य प्राप्त किया, तब उसने अपने मित्र अपकुमार को उसकी जन्मभूमि श्रावस्ती नगरी का राज्य दिया और दोनों मित्र एक साथ अपनाअपना राज्य करने लगे। एक दिन दोनों मित्रों ने यशसमुद्र आचार्य के निकट मुनिदीक्षा धारण की और सम्यग्दर्शन पूर्वक परमसंयम की आराधना पूर्वक समाधिमरण करके उत्कृष्ट देव हुए। वहाँ से च्यवकर अचलकुमार का जीव तो राजा दशरथ की सुप्रभा रानी का पुत्र शत्रुघ्न हुआ और उसके मित्र अपकुमार का जीव कृतान्तवक्र सेनापति हुआ। इस कारण शत्रुघ्न को मथुरा नगरी से विशेष प्रीति थी। इधर मथुरा नगरी में चमरेन्द्रकृत घोर मरी व्याधि का उपद्रव चल रहा था। उसी समय आकाश में गमन करने वाले और सूर्य समान तेजस्वी ऐसे चारण ऋद्धिधारी सात ऋषि-मुनिवर विहार करतेकरते मथुरा नगरी में पधारे। श्री सुरमन्यु, श्री मन्यु, श्री निचय, श्री सर्वसुन्दर, श्री जयवान, श्री विनयलालस और संजयमित्र नामक के सातों मुनिवर महाचारित्र के धारी और सगे भाई थे। वे श्री नन्दन राजा और धरिणी सुन्दरी रानी के पुत्र थे। प्रीतंकर स्वामी का केवलज्ञान देखकर वे सातों पुत्र पिता के साथ. ही वैराग्य को प्राप्त हुए और मात्र एक महीने के तुंबरु नामक पुत्र को राज्य देकर पिता तथा सातों पुत्र प्रीतंकर स्वामी के निकट दीक्षा लेकर मुनि हुए। ___श्रीनन्दन राजा तो केवली हुए और यह सातों पुत्र चारणऋद्धि आदि अनेक ऋद्धियों के धारी श्रुतकेवली हुए। वे गगनविहारी सप्तर्षि श्रुतकेवली भगवन्त पृथ्वी को पावन करते-करते मथुरा पुरी में पधारे और चातुर्मास के लिये मथुरा के वन में एक वटवृक्ष के नीचे विराजमान हुए।
SR No.032259
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2007
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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