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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/२२ चमरेन्द्र बोला- विशल्या की वह अद्भुत शक्ति कौमार्यावस्था में ही थी, इस समय तो वह विषरहित नागिन समान हो गई है, जब तक उसने वासुदेव का आश्रय नहीं किया था तभी तक बह्मचर्य के प्रसाद से उसमें असाधारण शक्ति थी, यद्यपि इस समय वह. पवित्र है, किन्तु ब्रह्मचारिणी नहीं है, इसलिये अब उसमें वह शक्ति नहीं रही। मैं अपने मित्र मधु राजा के शत्रु से अवश्य बदला लूँगा। —ऐसा कहकर वह चमरेन्द्र मथुरा की ओर चल दिया। मथुरा आकर चमरेन्द्र ने देखा कि यहाँ तो स्थान-स्थान पर उत्सव मनाया जा रहा है....जैसा उत्सव मधु राजा के समय में होता था, इस समय भी नगरजन वैसा ही मना रहे हैं। यह देखकर चमरेन्द्र ने विचार किया कि- अरे! यह प्रजाजन महादुष्ट एवं कृतघ्नी हैं। नगर का स्वामी पुत्र सहित मृत्यु को प्राप्त हुआ और दूसरे राजा ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया, फिर भी इन्हें शोक नहीं है, उल्टा हर्ष मना रहे हैं। जिसकी छत्र छाया में इतने समय तक सुख पूर्वक रहे, उस मधु राजा की मृत्यु से इन लोगों को क्यों दु:ख नहीं हुआ? यह लोग कृतघ्नी और मूर्ख हैं, इसलिये मैं इनका नाश कर दूंगा, अभी तत्काल ही समस्त मथुरा नगरी को नष्ट करता हूँ। —इसप्रकार वह असुरेन्द्र महाक्रोध पूर्वक मथुरा नगरी की प्रजा पर घोर उपसर्ग करने लगा। सारे नगर में भयंकर मरी व्याधि फैल गई....जो जहाँ खड़े थे वहीं खड़े-खड़े मरने लगे....जो बैठे थे वे बैठे-बैठे मृत्यु को प्राप्त हुए.....और सोने वाले सोते-सोते मर गये.... इस प्रकार उस भयंकर मरी के रोग से सारे नगर में हाहाकार मच गया और देवकृत उपसर्ग समझकर शत्रुघ्न भी अयोध्या लौट आये।। यद्यपि अयोध्या नगरी अति सुन्दर है, तथापि शत्रुघ्न का चित्त वहाँ नहीं लगता, उनका चित्त तो मथुरापुरी में ही अति-आसक्त है....जिस प्रकार सीता के बिना राम उदास रहते थे, उसी प्रकार मथुरा के बिना शत्रुघ्न भी उदास रहते हैं। यहाँ शास्त्रकार कहते
SR No.032259
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2007
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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