SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/१८ कि- इस समय राजा मधु वनक्रीड़ा के लिये नगर के बाहर उपवन में रहता है, उसे खबर तक नहीं है कि आप मथुरा जीतने के लिये आये हैं; इसलिये मथुरा पर आसानी से अधिकार किया जा सकता है। यह सुनकर शत्रुघ्न ने अपने योद्धाओं सहित मथुरा नगरी में प्रवेश किया। जिसप्रकार योगी कर्मनाश करके सिद्धपुरी में प्रवेश करते हैं, उसीप्रकार शत्रुघ्न द्वारों को तोड़कर मथुरापुरी में प्रविष्ट हुए और आयुधशाला पर अपना अधिकार कर लिया। परचक्र के आगमन से नगरजन भयभीत हो गये; किन्तु शत्रुघ्न ने ऐसा कहकर उन्हें धैर्य बँधाया कि यहाँ श्री राम का राज्य है, उसमें किसी को दुःख या भय नहीं है। शत्रुघ्न ने मथुरा में प्रवेश किया है, यह सुनकर राजा मधु क्रोध पूर्वक उपवन से नगर की ओर आया; परन्तु शत्रुघ्न के योद्धाओं ने उसे नगर में प्रविष्ट नहीं होने दिया। जिसप्रकार मुनिराज के हृदय में मोह का प्रवेश नहीं होता, उसी प्रकार राजा अनेक उपाय करने पर भी नगर में प्रवेश नहीं कर सका। यद्यपि वह त्रिशूल रहित हो गया था, तथापि महा-अभिमान के कारण उसने शत्रुघ्न से युद्ध किया। युद्ध में राजा मधु का पुत्र लवणसागर सेनापति कृतान्तवक्र के प्रहार से मृत्यु को प्राप्त हुआ। पुत्र की मृत्यु देखकर मधु राजा अत्यन्त शोक एवं क्रोध पूर्वक शत्रुघ्न की सेना से युद्ध करने लगा; किन्तु जिसप्रकार जिनशासन के स्याद्वादी पण्डित के समक्ष कोई एकान्तवादी नहीं टिक सकता, उसीप्रकार शत्रुघ्न की वीरता के समक्ष मधु राजा के योद्धा न टिक सके। शत्रुघ्न को दुर्जय समझकर, स्वयं को त्रिशूल आयुध रहित जानकर तथा पुत्र की मृत्यु और अपनी भी अल्पायु देखकर मधु राजा अत्यन्त विवेकपूर्वक विचार करने लगा कि- "अहो! संसार का समस्त आरम्भ महा हिंसारूप एवं दुःखदायी है, इसलिये सर्वथा त्याज्य है, मूढ़ जीव इस क्षणभंगुर संसार में सुख
SR No.032259
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2007
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy