SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/५६ संघश्री : 'सर्वथा विरुद्ध' और 'कथंचित् विरुद्ध' का मतलब क्या है ? अकलंक : जैसे कि चेतनपना और अचेतनपना अथवा मूर्तपना एवं अमूर्तपना – ये एक-दूसरे से सर्वथा विरुद्ध हैं। ये दोनों धर्म एक - वस्तु में नहीं रह सकते हैं। जो चेतन होता है, वह अचेतन नहीं होता । जो मूर्त है, वह अमूर्त नहीं होता। परन्तु नित्यपना और अनित्यपना - ये दोनों कथंचित् विरुद्ध धर्म हैं और ये दोनों एक ही वस्तु में एक साथ रह सकते हैं। संघश्री : क्या नित्यपना और अनित्यपना, दोनों धर्म एक ही वस्तु में एक साथ रहते हैं? अकलंक : जी हाँ । संघश्री : नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। एक वस्तु को नित्य कहना और उसी को फिर अनित्य कहना - यह तो 'स्ववचन बाधित' होगा ।
SR No.032255
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy