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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/८१ संसारी भोगासक्त जीव तो बाग-बगीचों में केली करने लगे, तब जिसका चित्त जिन-भक्ति से भीगा हुआ है, जिसके अंतर में वैराग्य के फूल महक रहे हैं - ऐसे हनुमान को तो मेरुतीर्थ की वंदना की भावना जगी।
अत्यंत हर्षपूर्वक रानियों को साथ लेकर वे सुमेरुपर्वत की तरफ चले, हजारों विद्याधर भी उनके साथ यात्रा करने चले। अहा, हनुमान का संघ तीर्थयात्रा करने आकाशमार्ग से सुमेरु की तरफ जा रहा है। रास्ते में अनेक भव्य जिनालयों तथा मुनिवरों के दर्शन करने से सभी आनंदित हुए। बीच में भरतक्षेत्र के बाद हिमवत और हरिक्षेत्र आया, (जहाँ जुगलिया जीवों की भोगभूमि है) तथा हिमवान, महाहिमवान और निषध -ये तीन महापर्वत आये; इन तीनों कुलाचलों के अकृत्रिम जिनालयों के दर्शन करके आनंद करते-करते सभी मेरुपर्वत पर आ पहुंचे।
अहो ! जिस पर इन्द्रों ने अनंत तीर्थंकरों का जन्माभिषेक किया है। जहाँ से अनंत मुनिवरों ने मोक्ष पाया है। जिस पर रत्न के जिनबिम्ब सदा ही शाश्वत विराजमान हैं, ऋद्धिधारी मुनिवर भी यात्रा के लिए आकर जहाँ आत्मा का ध्यान धरते हैं - ऐसे इस शाश्वत तीर्थ की अद्भुत शोभा देखकर हनुमान को जो महान आनंद हुआ, उसकी क्या बात कहें? अरे ! दूर-दूर से ही जिस तीर्थ का नाम सुनते ही अपना मन भक्ति से उसके दर्शन के लिए उल्लसित होता है। उस तीर्थ के साक्षात् दर्शन करने से जो हर्ष होता है, उसकी क्या बात करें ? - मात्र एक आत्मानुभूति के सिवाय जगत में जिनवर-दर्शन जैसा आनंद अन्यत्र कहीं नहीं। हनुमान सभी को मेरूतीर्थ का दिव्य शोभा बतलाते हैं, जिनवर देवों की अपार महिमा समझाते हैं और बारंबार जिनेन्द्रदेव के समान निज स्वरूप के ध्यान की प्रेरणा जगाते हैं।
सुमेरू पर्वत पर सबसे प्रथम भद्रशालवन है। उसमें १६ शाश्वत जिनालय हैं; पर ऊपर जाने पर दूसरा नंदनवन तथा तीसरा सोमनसवन आता है। वहाँ भी १६-१६ अकृत्रिम मंदिर हैं; उन मंदिरों की अद्भुत