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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/६५ अब निकट आया है, मेरे राम-लक्ष्मण के अद्भुत पराक्रम की अभी तुझे खबर नहीं। जब समुद्र उलांघकर वे यहाँ आयेंगे, तेरे पति को मार डालेंगे तब तू विधवा हो जायेगी।"
- ऐसे अनिष्ट वचन सुनते ही मंदोदरी आदि १८,००० रानियाँ सीता को मारने दौड़ीं, परन्तु वीर हनुमान ने बीच में आकर उन सबको भगा डाला। जैसे वैद्य रोग को दूर करता है, वैसे ही वीर हनुमान ने उन रानियों को भगाकर सीता का भय दूर किया। उन रानियों के भाग जाने के बाद हनुमान ने सीता से विनती की -
“हे बहन सीता ! अब तुम आहार-जल ग्रहण करो - ये सम्पूर्ण पृथ्वी राम की ही है - ऐसा समझो। राम के कुशल समाचार सुनने की तुम्हारी प्रतिज्ञा भी पूरी हो गई है, इसलिए हे बहन ! अब तुम भोजन करो; अपने हाथों से ही मैं तुम्हें पारणा कराऊँगा।" हनुमान द्वारा सीता का पारणा
विचक्षण बुद्धि र महासती सीता ने भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी हुई जानकर भोजन के लिए 'हाँ' कर दी....थोड़ी देर में ही सोने की थाली में शुद्ध भोजन आ गया। सीता ने समीपवर्ती साधर्मियों को निमंत्रण दिया, हनुमान के प्रति भाई जैसी प्रीति की, पंच परमेष्ठी के स्मरण पूर्वक मुनि वगैरह को
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