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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/६२ वृक्ष से सीता की गोद में डाली। अचानक राम की मुद्रा देखते ही सीताजी तो आश्चर्यचकित हो गई।
“अरे, ये अँगूठी कहाँ से ? जरूर कोई सत्पुरुष मेरे स्वामी का संदेशा लेकर यहाँ आ पहुँचा है !"
___ - ऐसे विचार से सीता के मुख पर प्रसन्नता छा गई। हमेशा उदास रहती सीता को एकाएक प्रसन्न देखकर रावण की दूतियाँ एकदम खुश होकर रावण के पास जाकर कहने लगीं -
“हे देव ! आज सीता प्रसन्न हो गई है।"
रावण ने उन स्त्रियों को बहुत इनाम दिया; उसने तुरन्त ही मंदोदरी आदि रानियों को सीता के पास उसे समझाने भेजा।
तब मंदोदरी सीता के पा आकर कहने लगी – “हे बाला ! तू आज प्रसन्न हुई ये अच्छा हुआ। अब तू रावण को अपना स्वामी अंगीकार कर और उसके साथ इन्द्राणी जैसा सुख भोग।"
यह सुनते ही सीता ने क्रोध से कहा – “अरी पगली ! ये तू क्या बकती है ? तू अपनी बकवास बंद कर ! मैं कहीं रावण के ऊपर प्रसन्न नहीं हुई हूँ; आज तो मेरे स्वामी का समाचार आया है, मेरे स्वामी कुशल हैं - ये जान कर मुझे हर्ष हुआ है।"
तब मंदोदरी ने कहा – “अरे सीता ! यहाँ लंका में राम का समाचार कैसा ? मुझे लगता है कि तू ११ दिन से भूखी है - इससे तुझे वायु का प्रकोप हो गया है, इसलिए तू ऐसा बोलती है।''
सीता ने हाथ में राम की अंगूठी लेकर पुकार लगायी -
“हे भाई ! मैं सीता इस लंका के भयानक वन में पड़ी हूँ, महा वात्सल्यधारक मेरे भाई समान तुम कोई उत्तम जीव मेरे स्वामी की मुद्रिका लेकर यहाँ आये हो, अतः मुझे प्रगट दर्शन देने की कृपा करो।"
श्री राम के समाचार से, जो हर्ष पावे जानकी। उस ही तरह भव्यजीव को, जिनदेव के दर्शन से ही।