SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/७८ देशभूषण-कुलभूषण देशभूषण और कुलभूषण कुछ भव पूर्व उदित और मुदित नाम के सगे भाई थे। उनकी माता का नाम उपभोगा था, वह दुराचारिणी थी, वसु नाम के दुष्ट पुरुष के साथ प्रेम करती थी। मोहवश उस दुष्ट वसु ने उसके पति को मार डाला तथा विषयांध माता उपभोगा ने अपने दोनों पुत्रों को भी मारने के लिए वसु से कहा – “ये दोनों पुत्र अपने दुष्ट कर्म को समझ जावें, इसके पूर्व ही तुम इन्हें मार डालो।" । अरे रे, विषयांध संसारी ! विषयों में अंधी हुई माता अपने सगे पुत्रों को भी मारने के लिए तैयार हो गयी; परन्तु उसके इस दुर्विचार को उसकी पुत्री समझ गयी और उसने अपने दोनों भाई उदित-मुदित को बताकर सावधान कर दिया। इससे क्रोधित होकर उन दोनों भाईयों ने वसु को मार डाला और वह मरकर क्रूर भील हुआ। फिर वे उदित-मुदित दोनों भाई एक मुनिराज के उपदेश से वैराग्य प्राप्त कर मुनि हो गये। वे सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखरजी की यात्रा को जाते समय रास्ता भूल गये और घोर जंगल में भटक गये। वहाँ पूर्व भव का बैरी क्रूर भील उन्हें पहचान गया और मारने को तैयार हो गया। इस उपसर्ग के प्रसंग को समझकर उदित मुनि ने मुदित मुनि से कहा “हे मुनि ! देह भी छूट जाये ऐसे भंयकर उपसर्ग का प्रसंग आया है, परन्तु तुम भय मत करना, क्रोध भी मत करना, क्षमा में स्थिर रहना; पूर्व में हमने जिसे मारा था, वह दुष्ट वसु का जीव, भील होकर इस समय हमें मारने आया है....परन्तु हम तो मुनि हो गये हैं, अपने को शत्रु-मित्र क्या ? इसलिए तुम आत्मा की वीतराग-भावना में ही दृढ़ रहना। उसके उत्तर में मुदित मुनि कहते हैं - अहो मुनिवर ! हम मोक्ष के उपासक, देह से भिन्न आत्मा का अनुभव करने वाले, हमको भय
SR No.032251
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy