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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/४५ इसी प्रकार खाये-पिये बिना ही एक दिन हो गया, दो दिन हो गये, चार दिन हो गये.....तब महावत ने श्री राम के पास आकर कहा “हे देव ! यह हाथी चार दिन से न कुछ खाता-पीता है, न सोता है और न ही क्रोध करता है। शांत होकर बैठा रहता है और पूरे दिन न जाने किसका ध्यान करता है। उसे रिझाने के लिए हमने बहुत प्रयत्न किये, लेकिन उसके मन में क्या है ? पता ही नहीं चलता, बड़े-बड़े गजवैद्यों को दिखाया, वे भी हाथी के रोग को नहीं जान सके- यह हाथी अपनी सेना की शोभा है। यह बड़ा बलवान है - इसे एकाएक यह क्या हो गया ? वह हमारी समझ में नहीं आता, इसलिए आप ही कोई उपाय कीजिए ! इसी समय अचानक एक सुन्दर बनाव बना । अयोध्या नगरी में दो केवली भगवंत पधारे.....उनके नाम थे - देशभूषण और कुलभूषण । (राम और लक्ष्मण ने वन गमन के समय वंशस्थ पर्वत पर इन दो मुनिवरों के उपसर्ग को दूर करके बहुत भक्ति की थी और उसी समय उन दोनों मुनिवरों को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।) वे जगत के जीवों का कल्याण करते-करते अयोध्या नगरी में पधारे। भगवान के पधारने से पूरी नगरी में आनंद ही आनंद छा गया। सब उनके दर्शन करने के लिए चले...... राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न भी उस त्रिलोकमण्डन हाथी के ऊपर बैठकर उन भगवन्तों के दर्शन करने के लिए आये..... और धर्मोपदेश सुनने के लिए बैठे। भगवान ने सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग का अद्भुत उपदेश दिया, उसे सुनकर सभी बहुत आनंदित हुए। त्रिलोकमण्डन हाथी भी उन केवली भगवन्तों के दर्शन से बहुत ही प्रसन्न हुआ और धर्मोपदेश सुनकर उसका चित्त संसार से उदास हो गया, उसने अपूर्व आत्म शांति प्राप्त की। उसने भगवन्तों को नमस्कार करके श्रावक के व्रत अंगीकार किये।
SR No.032251
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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