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________________ योगबिंदु ४. एकत्व भावना : एगोहं नत्थि मे कोइ, नाहमन्नस्स कस्सइ । एवं अदीण-मणसो, अप्पाणमणुसासइ ॥११॥ एगो मे सासओ अप्पा, नाण-दसण-संजुओ । सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग-लक्खणा ॥१२॥ संजोग-मूला जीवेण, पत्ता दुक्ख-परम्परा । तम्हा संजोग-संबंधं, सव्वं तिविहेण वोसिरिअं ॥१३॥ कर्मविपाकोदय के समय जीव को सुख-दुःख अकेले ही भोगना पड़ता है। उस समय कोई भी प्रेमी अथवा सगा-सम्बन्धी साथ नहीं आता । दुःख-सुख कोई भी किसी का नहीं बांट सकता। ऐसा विचार करके आत्मा पाप कर्म से बचे, यही एकत्व भावना का तात्पर्य हैं । ५. अन्यत्व भावना : स्वार्थ के कारण मैं और मेरापन है। स्वार्थ की पूर्ति जहाँ दिखाई नहीं देती सगे-सम्बन्धी भी उसे छोड़ देते हैं । संसार में प्रत्येक संसारी मनुष्य इस तथ्य का अनुभव करते हैं । इसलिये बताया है कि संसार के मोह जाल में आसक्त न होकर अनासक्तभाव को पैदा करे । बिना अपेक्षा सत्कार्य में संलग्न रहे। आत्मा को आसक्ति से उपर उठायें, यही इस भावना का सार है, क्योंकि आसक्ति पाप का मूल है । ६. अशुचि भावना : शरीर, देह में आसक्त होकर मनुष्य न करने जैसे पापाचरण करने लग जाता है। देह की मिथ्या आसक्ति को दूर करने के लिये देह के स्वरूप का ध्यान करना, शरीर तो रक्त, मांस, मज्जा, विष्ठा, मलमूत्र थूक आदि अपवित्र पुगलों से भरा है और भोजन, भोग्य सामग्री भी दुर्गन्ध से व्याप्त है, ऐसे स्वरूप का ध्यान करके मनुष्य पापाचरण से हटकर सत्कार्य में प्रवृत्त होता है। ७. आस्रव भावना : रागद्वेष की परिणति द्वारा कर्मों को अपनी और खींचना आस्रव है। आस्रव सभी दुःखों और क्लेशों का द्वार है। मनुष्य मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय के योग से विविध पापाचरणों को करके, विविध दुःखों का भोग बनता है और संसार में भटकता है, इसलिये आस्रव भावना को हेय कहा है । ८. संवर भावना : सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र की अप्रमत्त भाव से आराधना करने की उत्कट भावना संवर भावना है, इससे आते हुये कर्म अटक जाते हैं, रूक जाते हैं । ९. निर्जरा भावना : बारह प्रकार के तपों द्वारा, अनन्त भवों के निकाचित कर्म भी क्षय हो जाते हैं । परन्तु अज्ञान पूर्वक की गई तपश्चर्या अल्प कर्मों का क्षय करती है और कभी-कभी
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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