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________________ १४ योगबिंदु साथ सम्बन्ध हुआ 'यह मान्यता' युक्तियुक्त नहीं हो सकती । पूर्वोक्त कथनानुसार जीव में अनादिकाल से कर्म के अणुओं के साथ बद्ध होने की योग्यता है । यह योग्यता भी अनादिकालीन है ॥११॥ अनुग्रहोऽप्यनुग्राह्ययोग्यतापेक्ष एव तु । नाणुः कदाचिदात्मा स्याद् देवतानुग्रहादपि ॥१२॥ अर्थ : अनुग्रह भी अनुग्राह्य (अनुग्रह स्वीकार करने वाले) जीव की योग्यता की अपेक्षा रखता है, क्योंकि अयोग्य अणु-परमाणु, देव के अनुग्रह होने पर भी कभी भी आत्मा नहीं बन सकता है॥१२॥ विवेचन : संसार अर्थात् बन्ध अनादि है। शैवपंथी जो यह कहते हैं कि ईश्वर अर्थात् शिव की कृपा से ही जीव इस अनादि बन्धन से छूट सकते हैं । उनको लक्ष्य में रखकर, ग्रंथकर्ता कहते हैं कि ईश्वर की कृपा-अनुग्रह, अनुग्राह्य जीव की योग्यता की अपेक्षा रखता है, अर्थात् जीव में योग्यता हो तभी ईश्वर की कृपा सफल होती है। यदि बिना योग्यता के ही ईश्वर की कृपा सफल होती हो तो जड़ परमाणु के उपर किसी देव का महान अनुग्रह उसे आत्मा-चेतन में बदल दे, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता । ईश्वर की कृपा में ऐसा सामर्थ्य नहीं कि वह जड़ को चेतन और चेतन को जड़ में बदल दे । इस प्रकार सिद्ध यह हुआ कि जीव की योग्यता ही संसार और मोक्ष में प्रधान कारण है, ईश्वर की कृपा नहीं । ईश्वर का अनुग्रह निमित्त कारण जरूर हो सकता है । जीव कर्मबन्ध की योग्यता से संसार में भटकता है और कर्मक्षय में कारणभूत भव्यत्व की योग्यता से ही मोक्ष प्राप्त करता है। ईश्वर की कृपा सहायक हो सकती है, प्रधान कारण नहीं । ग्रंथकार का आशय यह है कि स्वयं शिव अनुग्रह करने वाले है और कर्मबद्ध जीव शिव द्वारा अनुग्राह्य बनता है। पर विचारणीय बात तो यह है कि जीव में अनुग्रह पाने की योग्यता हो, तभी शिव का अनुग्रह जीव के सम्बन्ध में सफल होता है । यदि जीव में अनुग्रह पाने की योग्यता ही नहीं होती तो शिव का अनुग्रह भी सफल नहीं हो सकता । आखिर तो सब आधार जीव की योग्यता के ऊपर ही अवलम्बित है । यदि जीव की अनुग्रह पाने की योग्यता है तो जीव शिव की कृपा से मुक्त हो सकता है, परन्तु जीव की अनुग्रह पाने की योग्यता ही नहीं हो तो जीव कभी भी शिव नहीं हो सकता अर्थात् मुक्त नहीं हो सकता । योग्यता बिना, केवल ईश्वर की कृपा, जड़-परमाणु को चेतन बना सकती है क्या ? चेतन को जड़ में परिवर्तित कर सकती है क्या ? अर्थात् नहीं । किसी भी बड़े से बड़े समर्थ देव का अनुग्रह भी किसी पदार्थ के स्वभाव को बदलने में कभी भी सफल नहीं हो सकता। जीव का कर्म अणुओं के साथ संयोग अथवा मुक्त होना जीव की अपनी योग्यता के आधार पर ही युक्तियुक्त है । जब विशिष्ट सामर्थ्य, योग्यता में ही निहित है तब ईश्वर के अनुग्रह को बीच में लाने की कोई जरूरत नहीं हो सकती । अनुग्रह होने पर भी जीव में अनुग्रह पाने की योग्यता तो माननी ही पड़ेग ॥१२॥
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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