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________________ ४२९ २४७ ४३०-४३१ २४८ २४९ २५१ ४३२-४३४ ४३५-४३७ ४३८ ४३९-४४२ २५३ २५३ ४४३ २५६ ४४४ २५६ ४४५ २५६ ४४६-४५४ २५७ २६३ २६४ २६४ संप्रज्ञातयोग का फल प्राणी मात्र में संवित अर्थात ज्ञान होता है मुक्त अवस्था में ज्ञान नहीं होता, ऐसी शंका का समाधान सर्वज्ञपन का स्वरूप प्रकट तौर पर समझाया है सर्वज्ञपना सिद्ध होने से क्या सिद्ध होता है कुमारिल भट्ट के सुभाषित मीमांसक मत वालों को प्रत्युत्तर सांख्यमत का निराकरण आत्मा का अन्य स्वरूप जैन और सांख्य मत के पंडितों का परस्पर मतभेद और समाधान परदर्शन वालों की शंकाओं का समाधान अन्य दर्शनकारों के तत्त्व की मीमांसा बौद्धमत का दर्शन और उसका प्रत्युत्तर क्षणिकत्व के पक्ष में आते विरोध आत्मा न तो एकांतिक नित्य है न ही एकान्तिक अनित्य परवादियों द्वारा प्रस्तुत दोषों का समाधान इस बारे में अद्वैतवादी प्रेमी युक्ति क्या है एकांतिक नित्यवादियों की युक्तियों का समाधान वास्तविक आत्मस्वरूप को यथार्थ रूप से समझाना कर्मक्षय होने से समाधिभाव प्रकट होता है आगम के अनुसार योग-मार्ग बताने का प्रारंभ योग की अंतिम अवस्था में मोक्षप्राप्ति होती है मोक्ष के संबंध में अन्य मतों की शंकाएँ और समाधान स्वभाव की निवृत्ति में आत्मा का परिणामीपन कारण है मुक्त अवस्था का स्वरूप और सुख विद्वत्ता का फल २६९ २७० ४५५-४५७ ४५८ ४५९-४६७ ४६८-४७० ४७१-४७२ ४७३-४७६ ४७७ ४७८-४८५ ४८६-४८९ ४९०-४९४ ४९५ ४९६-४९७ २७२ २७५ २७६ २८० २८२ २८५ २८५ ४९८-५०० २८६ ५०१-५०२ २८८ ५०३-५०७ २८९ ५०८-५१० २९२
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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