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________________ २०९ २१० २११ २१२-२१४ २१५ २१६ २१७-२१८ २१९-२२० २२१ २२२-२२३ २२४ २२५-२२६ १३५ २२७ २२८-२२९ २३०-२३१ शुद्ध अनुष्ठान योग का हेतु होने से उस अनुष्ठान को योग कहा जाता है १२७ योग के तीन अंग १२७ अनुष्ठान के तीन प्रकार १२८ अनुष्ठान का क्रमपूर्वक स्वरूप १२८ अनुष्ठान का फल अनुष्ठान का हेतु १३० दूसरे स्वरूप अनुष्ठान का स्वरूप १३१ तीसरे शुद्ध अनुष्ठान से दोषों का नाश होता है १३२ मोक्ष के अर्थ शास्त्र के अधीन रहते हैं। उपदेश की आवश्यकता कहाँ है और कहाँ नहीं १३३ धर्मार्थियों को शास्त्र में प्रयत्न करना चाहिये १३५ शास्त्रों की स्तुति गुणानुरागी का धर्मानुष्ठान सत्फलदायी है १३७ किसकी क्रिया आदरपात्र नहीं होती १३७ सिद्धांत पर आदर रखना चाहिये आत्मस्वरूप की सिद्धि तीन के बल से होती है १३८ सिद्धि किसे कहते हैं १३९ कौनसी सिद्धियाँ पातरूप होती हैं १४० कौनसी सिद्धियाँ पात का कारण नहीं होती १४१ सिद्धियाँ अपने-अपने कारण मिलने पर उत्पन्न होती हैं, अन्यथा नहीं । आगम प्रसिद्ध व्यवहार छोड़कर हठाग्रह से मोक्ष के लिये प्रवृत्ति करना मूर्खता है उपरोक्त बात व्यतिरेक भाव से कही है सद्योग वाली भव्य आत्माएँ गर्भ में होते हुए भी माता की प्रशंसा करवाती हैं। १४५ महापुरुषों का प्रकट भाव से उदय कैसा होता है १४६ मयूर के दृष्टांत का उपनय १३८ २३२ २३३ २३४ २३५ १४१ २३६-२३८ २३९-२४० २४१ २४२-२४३ २४४ २४५-२४६ ३५
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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