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________________ कर्ता: श्री पुज्य कीर्तिविमलजी महाराज:42 सुमति जिणेसर सेवीये हो लाल, सुमति-तणो दातार सा० बहु-दिननो उमाहलो हो लाल, दरिसण आपो सार -साहेबजी-सुमति०(१) मेघराय कुल-चंदलो हो लाल, मंगला मात मल्हार सा० भव-भयथी हुँ ऊभग्यो हो लाल तुं मुज शरणुं सार ___-साहेबजी-सुमति०(२) पाये क्रौंच सेवे सदा हो लाल, तुंबरु सारे सेव सा० महाकाली सुरि सदा हो लाल, विघ्न टाले नित्यमेव सा० -साहेबजी-सुमति०(३) नयरी कोशलाओ अवतर्यो हो लाल, तव वरत्यो जयजयकार-साहेबजी घरे-घरे हरख-वधामणां हो लाल, धवल-मंगल दे नार -साहेबजी-सुमति०(४) अनंत गुण छे ताहरा हो लाल, कहेतां नावे पार सा० दिन-दिन तुम्ह सेवा थकी हो लाल, ऋद्धि कीर्ति अनंतनी सार -साहेबजी-सुमति०(५) १८
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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