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________________ कर्ता : पूज्य श्री ज्ञानविमलसूरि महाराज 2 संभव-जिनवर ! खूब बन्यो रे, अविहड धर्म-स्नेह दिन-दिन ते वधतो अछेरे, कबही न होवे छेह सोभागी जिन ! मुज मन तुंही सुहाय ए तो बीजा नावे दाय हुं तो लळी-लळी लागुं पाय - सोभागी ०(१) दूधमांही जिम घृत वस्यूं रे, वस्तुमांही सामर्थ तंतुमांही जिम पट वस्यो रे, सूत्रमांही जिम-अर्थ-सोभागी०(२) कंचन पारस-पहाणमां रे, चंदनमां जिन वास पृथ्वीमाही जिम ओषधी रे, कार्ये कारण वास-सोभागी०(३) जिम स्याद् वादे नव मिले रे, जिम गुणमां पर्याय अरणीमां पावक वस्यो रे, जिम लोके खटकाय-सोभागी० (४) तिणपरे तुं मुज चित्त वस्यो रे, सेना-मात मल्हार जो अ-भेद बुद्धि मिले रे, श्री ज्ञानविमल-सुखकार-सोभागी०(५) २८
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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