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________________ मनमां आवजो रे नाथ ! हुं थयो - श्री पूज्य ज्ञानविमलजी महाराज मनमां आवजो रे नाथ ! हुं थयो आज सनाथ. मन 0 जय जिनेश निरंजणो, भंजणो भवदुःखराश; ____ रंजणो सवि भविचित्तनो, मंजणो पापनो पाश. मन. १ आदि ब्रह्म अनुपम तुं, अब्रह्म कीधां दूर; भवभ्रम सवि भाजी गया, तुंहि चिदानंद सनूर. मन.२ वीतरागभाव न आवही, जिहां लगी मुजने देव; ___तिहां लगे तुम पद कमलनी, सेवना रहेजो ए टेव. मन.३ यद्यपि तुमे अतुलबली, यशवाद एम कहेवाय; पण कबजे आव्य मुज मने, ते सहजथी न जवाय. मन.४ मन मनाव्या विण माहरु, केम बंधनथी छुटाय ? मनवांछित देतां थका कांई, पालवडो ना झलाय, मन.५ हठ बालनो होय आकरो, ते लहो छो जिनराज! झाझं कहावे | होवे, गिरुआ गरीब निवाज. मन.६ ज्ञानविमल गुणथी लहो, सवि भविक मनना भाव; तो अक्षय सुख लीला दीयो, जिम होवे सुजस जमाव. मन.७ 30४
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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