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________________ कर्ता : पूज्य श्री रामविजयजी महाराज 8 चंद्रप्रभनी चाकरी, मुने लागी मीठी जगमा जोडी जेहनी, किहां दीसे न दीठी-चंद्र० (१) प्रभु चरणे माहरु, मनडुं ललचाणुं कुण छे बीजो जगे ? जिणे जोये पलटाणुं -चंद्र (२) कोड करी पण अवर को, मुज हियडे नावे सुरतरुफूले मोहियो, किम आक सोहावे- चंद्र० (३) मुज प्रभु मोहनवेलडी, करूणाशुं भरीओ प्रभुता पूरी त्रिभुवने, गुण-मणिनो दरिओ- चंद्र०(४) जिम जिम निरखं नयणडे, तिम हियडुं हुलसे एक घडीने अंतरे, मुज मनडुं तलसे - चंद्र० (५) सहज-सलूणी साहिबो, मळ्यो शिवनो साथी सहजे जीत्यो जगतमें, प्रभुनी सेवाथी - चंद्र० (६) विमळविजय गुरु शिष्यनो, शिष्य कहे कर जोडी रामविजय प्रभु नामथी, लहे संपद कोडि-चंद्र० (७) EL
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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