SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १) अगणित करी में आरजू सांभळनारो ना मल्यो, भक्ति करी खरा भावथी पण झीलनारो ना मल्यो; सेवा सरस घणी आदरी शिरताज स्वामी ना मल्यो, मोडु थयुं पण आखरे मारो मालिक मुजने मल्यो । युगना युगो वीती गया, प्रभु आपना दरिसन विना ओळे गयो आ जन्म मारो आपनी भक्ति विना वीती गयुं छे जीवन मारु आपना मिलन विना फोगट गुमाव्यो आ जन्म मारो थइ नथी आराधना ॥ 图图图图图图图图画面图图图图图图图图图图画圈圈 शनिवार १) हैये वसेला नाथ तारी अजब सुंदर मूर्ती, जोया करू अनिमेष नयने तोय तृप्ति ना थती; वसवा मळे भवोभव मने बस आपनां चरणोंमहि, अथी वधु ओ नाथ ! हुं मांगु हवे कशुं ये नही..॥ २) हे नाथ ! तमारुं नाम मारा रोमे रोमे गुंजतुं, जेना प्रचंड प्रतापथी दुष्कर्म नुं दल ध्रुजतुं; स्वामी तमारुं रूप आंखे अq अंजन आंजतुं ज्यां ज्यां नजर मारी फरे दिसे बधे तुंही ज तुं....॥ - -
SR No.032214
Book TitleSurendra Bhakti Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPiyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
PublisherShatrunjay Temple Trust
Publication Year2003
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy