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________________ - स्तवन - २७ (राग चांदि जैसा रंग हे तेरा - गजल) शांति जिणंद प्रभु त्रिभुवन स्वामी शीवगामी यशनामी, जेहने परम प्रभुता पामी, सिद्धिवघू सुखकारी ॥१॥ चोसठ ईन्द्र रह्या करजोडी, पाय नमे मनमोडी अमरी भमरी परे मुखकमले, रास लीये हाथ जोडी ॥२॥ 1 भावथी ताल विना प्रभु पासे धपमप मृदंग बजावे, ता ता थै थै नाटक करे, निज लळी लळी | शीशनमावे ॥३॥ समता सुंदरी ना प्रभु भोगी त्रण रत्न मुज आपो; दिनदयाल कृपाकरी तारक जन्म मरण दुःख कापो॥४॥ निर्मोही पण जगजन मोहे, देशना भवि पडिबोहे ; अकल अगम्य अचिन्त्य तुज महिमा, योगीश्वर नवि जोये ॥५॥ शांति जिनेश्वर शांति अनुपम, मोहन कहे मुज आपो; अचिरा नंदन बाह्य ग्रहीने, मने सेवक रूपे स्थापो ॥६॥ 33
SR No.032214
Book TitleSurendra Bhakti Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPiyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
PublisherShatrunjay Temple Trust
Publication Year2003
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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