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________________ [२] - तरुण अवस्था धारा नगरी में श्रीमान् कपूरचन्दजी के सुपुत्र हजारीमलजी मडलेचा के साथ ११ वर्ष कि अवस्था में लग्न हुआ, इस समय तक इन्होंने कुछ भी ज्ञान संपादन नहीं किया था। परन्तु छोटी उम्र में ही धर्म का अनुराग था और सत समागम से धर्म कार्य करते थे। सिर्फ १॥ वर्ष के अल्पकाल में हो १३ वर्ष की उम्र में पति श्रीमान् हजारीमलजी का स्वर्गवास हो गया, इस दुःख कि अवस्था में श्रीमान् गणपतजी वैद्य जो पूज्य गुरुदेव के बहनोई थे और बहिन रूपाबाई ने इनका संरक्षक किया पैसा होते हुये भी तरुण अवस्था जो संरक्षक न होये तो मनुष्य उल्टे मार्ग पर चढ़ जाते हैं । परन्तु माता तुल्य बहिन ने बहुत दीर्घ दृष्टि सोचकर इन्दौर में दोनों भाई बहिन को अलग मकान लेकर रखा फिर व्यवहारीक शिक्षण सरकारी स्कूल में प्रारम्भ करवाया और दो साल में चौथी क्लास कि परीक्षा दी और सरकारी कन्या पाठशाला नं. १ में मास्टर नी का स्थान प्राप्त किया और आगे व्यवहारिक विद्याभ्यास चालु रखा मिडिल कि परीक्षा से उत्तीर्ण होकर हिन्दी प्रथमा विगेरे कि परीक्षा दी और धार्मिक अभ्यास श्रीमती सौभागवती जड़ावबाई छाजेड़ कि शुभ प्रेरणा से उनके ही पास में पंच प्रतिक्रमण, नवस्मरण, चार प्रकरण, तत्वार्थस्त्र
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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