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________________ [ ५४ ] धारो | तु प्रभु पुरण आश | जिणंदराय० ॥ १ ॥ तुं समरथ त्रिहुँ लोक मारे, गिरूओ गरीब निवाज | तुझ सेवा थी साहिबो रे, सीझे वांछित काज जिणंदराय || २ || शिव सुखदायक तु जयोरे, भव भय भंजनहार । तुजमुज मन नेहलोरे, चातक जिम जल धार जिणंदराय || ३|| तुज पद पंकज फरसथी रे, निरमल श्रतम होय । लोह सोवनता जिम लहे रे, वेधक रस थी जोय जिणंदराय || ४ || तुज प्रणमीजे पूजीये रे ते दिन सफल विहाण । तुज हित थी प्रभु मुंज तणु रे जीवित जन्म प्रमाण जिण दराय ||५|| अंतरजामी माहरारे, अरज करू कर जोड़ | भगते तुम पद सेवना रे, द्यो मुझ एहीज कोड़ जिण दराय || ६ || सुखदायक त्रिभुवन धणीरे, भव जल तारण नाव | केसर विमल इम विनवेरे, पर जिन भक्ति प्रभाव जिणंदराय 9 ||७|| Jafo anche se fo १७ मल्लीनाथजी का स्तवन (राग - तुज शासन अमृत मीठु संसारमां नवी दीठु रे मन मोहन स्वामी) सेवो भवियण मल्ली जिणेसर, भाव भगती मण भाणी रे, मारो जिनजी सोहावेरे । गंगोदक जल कुंभ भरी भरी, स्नान करो भवि प्राणी रे मारो जिन मनोहारी ॥ १ ॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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