SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५ श्रेयांसनाथजी का स्तवन (राग–अरिहंत पद ध्यातो थको-ए देसी) श्री श्रेयांस जिन साँभलो, सिंहपुर नगर निवासी रे । तुम सेवा मुज मनवसी, गज मन रेवा जेसीरे ॥श्री०॥१॥ जो आपो तुम सेवना तो, मन हरख न मायरे । कस्तुरी अंबर वही, जिम अधिकी मह मायो रे ॥श्री०॥२॥ गिरा जननी सेवना, कदीय न निष्फल थायरे। हरि रयणायर सेवतां, लच्छी लही सुखदाय रे ॥श्री०॥३॥ रिसहेसर सेवा थकी, नमि विनमी नृप नाथरै । हर सेवत गंगा लह्यो, हर सिर उत्तम ठायरे ॥श्री०॥४॥ तिम प्रभु तुज सेवा थकी, सीझे वांछित आशोरे । तुज सुपसाये साहिबा, लहीये लील विलासोरे ॥श्री०॥५॥ लोह चुमक ज्यु माहरो मन लाग्यो तुम साथ रे। तिम जो मोसु तुमे मिलो, तो मुगति मुझ हाथ रे ॥श्री०॥६॥ मन मोहन मुज विनती, श्री श्रेयांस जिन स्वामी रे । यो प्रभु तुम पय सेवना, केसर कहे शिरनामी ॥श्री०॥७॥ १६ अरनाथजी का स्तवन _ (राग-पुखलबई विजये जयोरे-ए देशी) कवि कुमुद वन कौमुदी रे, समरी शारद माय । अरम : करू अरजिन भणी रे, भावधरी मन माय, जिणंदराय
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy