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________________ [२८] पंच भोग छंड्या जगमांहि, पंच महाव्रत धारी जी। पंचमीनो तप करता अमने, होजो शिवसुख कारी जी ॥२॥ आगम नो आगम प्रतित्य, दुःख विषधर विष नासे जी । जे नर नारी भाव धरीने, एहिज मंत्र उपासे जी॥ जीवदया मिरमल जलदरीयो, उपसम रसथी भरीयो जी। तेथी पंचमी तप जगमांही, सवि भवियण आचरीयो जी ॥३॥ रुम झुम रुम झुम झांजर चरणे, शरणे आव्या राखे जी। अंबाई देवी सुरनर सेवी, वयणे मधुरु भाखे जी ॥ लब्धिवंत महाजश मोटो, सेवक जन आधारा जी। पंचमीनो तप करता देवी, हर्या विघन हमारा जी ॥४॥ ८ ग्यारस की स्तुति का जोडा (राग-श्री शत्रुजय तीरथ सार) वीर जिनने पूछे गणधारी, गौतम नामे पर उपकारी, निसुणे सुर नरनारी । कहुं भगवन एक वचन विचारी, मागसर अग्यारस सुखकारी, कुणे किधी कुणे धारी ॥ श्री जिन कहे सांभल अणगारी, अंग थकी सवी आलस वारी, उपसम रस मन ठारी । वासुदेव त्रण खंड भोक्तारी, डेढसय कल्याण किर कारी, सारी तेणे ए तवि संभारी ॥१॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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