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________________ [ २४ ] ४ पार्श्वनाथजी की स्तुति का जोडा (राग - श्री शत्रु जय तीरथ सार) परम प्रभु परमेस जिंद, परमसुखाकर शिवसुख कंद, प्रणमु पास जिणंद | परम दयाल दयानिधिचंद, परमधरम परकास दिणंद, पेख्या परमानंद ॥ पूजित सूरनर पय अरविंद, आणा हे सिरे इंद नरिंद, सेवे सकल मुदि । वामा देवी केरो नंद, जरा निवारी जितायो गोविंद, टाले भव भय कंद || १ || रण अटवी उजाड उबेखी, कांटी भरु टले नहिं लेखी, थलमा थानक रेखी | सुंदर सुरत सुगुण सुवेखी, मूरत मीठी जाणे विशेखी, निरखे सहु अनमेखी ॥ अभिगम पांचे चितमा वेखी, प्रणित करे पचांग गवेखी, मोझा मुखड देखी । मनु जन्म सफलो इम लेखी, समकित शुद्ध सुरंग सुखी, पवित्र थया प्रभु पेखी ||२|| गोडीपारसजी बहुगुण खाणी, वीशमो तीर्थकर जाणी, आव्या इन्द्र इन्द्राणी | सुरनर कोडी मिल्या मंडाणु, त्रिगडे तोरण श्रेणि बंधाणि, परषदा बार भराणी ॥ जगगुरु तखत आव्या हित जाणी, योजन मान वखाणे वाणी, निसुणे सहु भव्य प्राणी । श्रतम अन्तर अमिय समाणि अस्थि मजामांहि भेदानी, शिव सुखनी सहि नाणी ||३||
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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