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४ पार्श्वनाथजी की स्तुति का जोडा
(राग - श्री शत्रु जय तीरथ सार)
परम प्रभु परमेस जिंद, परमसुखाकर शिवसुख कंद, प्रणमु पास जिणंद | परम दयाल दयानिधिचंद, परमधरम परकास दिणंद, पेख्या परमानंद ॥ पूजित सूरनर पय अरविंद, आणा हे सिरे इंद नरिंद, सेवे सकल मुदि । वामा देवी केरो नंद, जरा निवारी जितायो गोविंद, टाले भव भय कंद || १ ||
रण अटवी उजाड उबेखी, कांटी भरु टले नहिं लेखी, थलमा थानक रेखी | सुंदर सुरत सुगुण सुवेखी, मूरत मीठी जाणे विशेखी, निरखे सहु अनमेखी ॥ अभिगम पांचे चितमा वेखी, प्रणित करे पचांग गवेखी, मोझा मुखड देखी । मनु जन्म सफलो इम लेखी, समकित शुद्ध सुरंग सुखी, पवित्र थया प्रभु पेखी ||२||
गोडीपारसजी बहुगुण खाणी, वीशमो तीर्थकर जाणी, आव्या इन्द्र इन्द्राणी | सुरनर कोडी मिल्या मंडाणु, त्रिगडे तोरण श्रेणि बंधाणि, परषदा बार भराणी ॥ जगगुरु तखत आव्या हित जाणी, योजन मान वखाणे वाणी, निसुणे सहु भव्य प्राणी । श्रतम अन्तर अमिय समाणि अस्थि मजामांहि भेदानी, शिव सुखनी सहि नाणी ||३||