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________________ [१५५] रे ॥१॥ मम करो ममता रे समता आदरो, आणो चित्त विवेको रे । स्वोरथियां सज्जन सहुए मल्यां, सुखदुःख सहेशे एको रे ॥मम०॥२॥ वित्त घहेंचण आवो सहुये मले विपत्ति समय जाय नासी रे । दव बलतो देखी दश दिशें पुले, जिम पंखी तरु वासी रे ॥मम०॥३॥ खट खंड नवनिधि चौद रयण धणी, चौसठ सहस्स सुनारी रे । छेहड़ो छोड़ी ते चाल्या एकलारे, हार्यो जेम जुआरी रे ॥मम०४॥ त्रिभुवन कंटक विरुद धरावतो, करतो गर्व गुमानो रे। त्रागा विण नागा तेहुँ चाल्या, रावण सरिखा राजानो रे ॥ मम० ॥५॥ माल रहे घर स्त्री विश्रामिता प्रेत वना लगे लोको रे । चय लगें काया रे, आखर एकलो, प्राणी चले परलोको रे ॥मम०॥ ६॥ नित्य कलहो बहु मेल देखिों , बहु पणे खट पट थाय रे । बलयानी परें विहरिस एकलो, एम बूझयो नमी रायो रे ॥मम०॥७॥ २९ श्री चन्दनबाला की सज्झाय (नारे प्रभु नहि मानु-ए देशी) मारु मन मोहुंजी, इम बोले चंदनबाल मारु।। मुज फलीयो सुर तरु साल ॥मारु.॥ हुँ रे उमरड़े बेठी हुंती। अत्रम तपने अन्ते, हाथ डसकलां चरणे बेड़ी माहरा मननी
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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