SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १५४ ] मात पिता सुत धामरे || तिहां राख्या जिन नाम रे, शरण कियो नेमि स्वाम रे । व्रत लेइ अभिराम रे, पोहोता शिवपुर ठाम रे || लाल ० ||५|| नित्य मित्र सम देहड़ी, सयणां पर्व सहाय रे । जिनवर धर्म उगारशे, जिम ते वंदनिक भाय रे || राखे मंत्रि उपाय रे, संतोष्यो वली राय रे । टाल्यां तेहना अपाय रे || लाल ० || ६ || जनम जरा मरणादिका, वयरी लागा छे केड़ रे । अरिहंत शरण ते आदरी, भव भम्रण दुःख फेड़ रे || शिव सुन्दरी घर तेड़ रे, नेह नवल रस रेड़ रे । साँची सुकृत सुर पेड़ रे || लाल० ॥७॥ 1 २८ बार भावना की सज्झाय दोहा एम भव भव जे दुःख सहया, ते जाणे जगनाथ | भय भंजन भावठ हरण । न मल्यो अबिहड़ साथ ॥ १ ॥ तिण कारण जीव एकलो, छोड़ो राग गल पास । सवि संसारी जीवशु, धरि चित्त भाव उदास ॥२॥ ढाल चौथी (राग - गोड़ी ) चोथी भावना भवियण मन धरो, चेतन तु एकाकी रे । आव्यो तिम जाइश परभव, बली इहां मूकी सवि बाकी 1
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy