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________________ [ १२६ ] ४ श्री अष्टमी की सज्झाय श्री सरस्वती चरणे नमी, आपो वचन विलास भवियण । अष्टमी गुण हुं वर्णनु, करी सेवक ने उल्लास भवियण ॥ १ ॥ अष्टमी तप भावे करो, आणी हर्ष उमेद भवियण । तो तुमे पामशो भव तणो, करशो कर्मनो छेद भवियण ॥ अ० ॥ २ ॥ अष्ट प्रवचन ते पालिये, टालीए मदनां ठाम भवियण । अष्ट प्रतिहार्य मनधरी, जपीए जिन नाम भवियण ॥ अ० ॥ ३ ॥ एहवो तप तुमे आदरो, घरो मनमां जिनधर्म भवियण । तो तुमे छुटसो आपदा, टालशो चिहुँ गति मर्म भवियण ॥ अ० ॥४॥ ज्ञान आराधन एह थकी, लहीए शिव सुख सार भवियण । आवागमन जन नहि हुए, ए छे जग आधार भवियण ॥ अ० ॥ ५ ।। तीर्थकर पदवी लहे, तपथी नवे निधान भवियण । जुओ मल्लिकुमरी परे, पामे ते बहु गुण ज्ञान भवियण ॥ अ० ॥ ६ ॥ ए तपना छे गुण घणा, भांखे श्री जिन इश भवियण । श्री विजय रत्न सुरीदनो, वाचक देव सुरीश भवियण ।। अ० ॥ ७ ।। ५ श्री एकादशी की सज्झाय गोयम पूछे वीरने सुणो स्वामीजी, मौन एकादशी
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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